कविता

संस्कार की भाषा

तनिक-तनिक बात पर
मत उपजाओ द्वेष का आवेश
मनमोहक सम्बन्ध दिखाकर
जरा चरित्र का करो उत्कर्ष ।

मानवता ही है इंसानियत का धर्म
मुस्कान का सदा वास रख होंठो पर
गंगा-जमुनी तहज़ीब को धारण कर
समाज मे स्थापित करो अद्भुत हर्ष।

बहुरूपिया का वेष धारण कर मत
हो स्वार्थ के प्रवाह में अविभूत
दो कौड़ी में बेचकर अपना ईमान
मत करो अनमोल चरित्र का कर्ष।

तुम्हारा पल-पल रंग बदलते देख
अब तो गिरगिट भी लगा शरमाने
पुरुषत्व का बहाकर प्रखर ज्वार
मानवता का मत करो अपकर्ष।

सब मे उपजाओ भाव अनुराग का
राग मत गाओ छित्र-भिन्न विराग का
मानस पटल में स्थापित कर भाव द्वंद का
रिश्ते का मत करो आपस मे आकर्ष।

अंकटमय तत्वों का हो जब हमला
ज़िन्दा लाश बनने के बजाय टूट पड़ो
अपने वजूद का एहसास दिलाने खातिर
निकाल कर कमान से ओजस्वी विकर्ष।

~आशुतोष यादव
बलिया, उत्तर प्रदेश

आशुतोष यादव

बलिया, उत्तर प्रदेश डिप्लोमा (मैकेनिकल इंजीनिरिंग) दिमाग का तराजू भी फेल मार जाता है, जब तनख्वाह से ज्यादा खर्च होने लगता है।