लघुकथा – रस्म अदायगी
भ्रष्टाचार और हत्या आदि के आरोपों से घिरे नेताजी ने गांधी जयंती समारोह की तैयारियों का जायजा लेने के लिए अपने आवास पर समर्थकों की बैठक बुलाई। सभी बारी-बारी से अपने कामों का विवरण दे रहे थे।
पहला बोला- ” सर, सौ रूपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से भाड़े पर भीड़ का प्रबंध हो गया है।”
दूसरे ने कहा- “हुजूर, गांव में आपके खेतों पर काम करने वाले कुछ बंधुआ मजदूरों को बुला लिया गया है, जिन्हें कल समारोह में दलित के नाम पर सम्मानित किया जाना है।”
तीसरे समर्थक ने अपनी बात रखी- “पहलवान जी को समरोह स्थल के चारों तरफ हथियारों से लैस गुंडों को तैनात रखने के लिए बता दिया गया है।”
चौथे ने भी जानकारी दी- “साहब, समारोह समाप्ति के बाद समर्थकों के लंच के लिए मटन और शराब की पूरी व्यवस्था हो गई है। साथ में नाच-गाने के लिए लड़कियां भी बुला ली गई हैं।”
नेताजी कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे।
अगले दिन नेताजी का काफिला समारोह स्थल पहुंचा। पैसों के लोभ में आई भीड़ ने ‘नेताजी जिन्दाबाद’ के नारे लगाए। नेताजी ने हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन किया और सबसे पहले महात्मा गांधी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया। फिर भीड़ को संबोधित करते हुए कहा- “देवियों और सज्जनों, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन पर हम सभी उन्हें सादर नमन करते हैं। उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपना कर ही हम रामराज्य की कल्पना साकार कर सकते हैं….”
फिर नेताजी ने लंबा-चौड़ा भाषण दिया। और इस तरह, इस वर्ष भी गांधी जयंती को राष्ट्रीय पर्व मनाने की रस्म अदायगी कर दी गई।
— विनोद प्रसाद