कविता
पथहीन होकर कैसे
न भटके रास्ता
लक्ष्य विहीन होकर जियें तो
जीवन, जीने से क्या फायदा,
बिना पता लिखे लिफ़ाफ़े
की तरह है,जिंदगी
जो किसी मुकाम पर नहीं पहुँचती।
ऐसा कुछ करके अंतहीन दुनिया में कदमो के निशान बना कर जाना
अंन्नत काल तक ,युगों युगों तक
माँ शारदे गुणगान करे।
परोपकार की छाँव मे अंतर्मन मन मे
सच्चाई का बीजारोपण कर
धर्म ,शान्ति और प्रेम की खाद मिला कर ।
कल्पवृक्ष का निर्माण करे हम
सौहार्द , खुशहाली की डाली पर
सुख की बूंदों की वर्षा कर ,
शुद्ध विचारो की जब फसले
लहरायेगी।
विश्व शान्ति की चरम सीमा तक
भारत की जयजयकार गुजयमान
हो जाएगी।
मेरे भारत का सपना साकार होगा।
जब हर एक मन मे आपसी प्यार भरा
व्यवहार होगा।
सबका लक्ष्य चारो ओर शान्ति फैलाना होगा।
उस दिन नव भारत का सुखमयी अवतार होगा।
नव भारत का एक बार फिर सोने की चिड़िया रूपी
अवतार होगा।
— आकांक्षा रूपा चचरा