कुण्डली
शरद सुहानी सी लगे, मनहर अरु गुलजार ।
शशि को करके शुभ विदा, रवि जी झांके पार।
रवि जी झांके पार, रोशनी बढ़ती जाय ।
दिन जैसे जैसे चढ़े, ठंढक मिटती जाय।
जा तू पावस मास, कि तेरी खत्म कहानी।
कर ले तू आराम, कि आई शरद सुहानी।
शरद सुहानी सी लगे, मनहर अरु गुलजार ।
शशि को करके शुभ विदा, रवि जी झांके पार।
रवि जी झांके पार, रोशनी बढ़ती जाय ।
दिन जैसे जैसे चढ़े, ठंढक मिटती जाय।
जा तू पावस मास, कि तेरी खत्म कहानी।
कर ले तू आराम, कि आई शरद सुहानी।