चतुष्पदी
घर आँगन में धन धान्य भरे और खेतों में हरियाली हो।
सब सुख के साधन मिले तुम्हे हर तरफ दिव्य खुशियाली हो।
ऐश्वर्य बढ़े अरोग्य रहो दिन दूनी प्रगति तुम्हारी हो,
धन त्रियोदशी सबके घर में सुख सम्पति देने वाली हो।
चिर यौवन तन,प्रमुदित हो मन,घर आँगन खुशहाली हो।
लक्ष्मी जी की कृपा सदा हो, जेब कभी ना खाली हो।।
मिटे गरीबी हर घर की , भूखे के आगे थाली हो ।
धन तेरस ऐश्र्वर्य दिलाये , मंगल मय दीवाली हो
ज्योतिरमय दीप मालिका से,प्रभु पूरण विनय हमारी हो |
हर दंपति के कुल दीपक हो,हर आँगन में किलकारी हो ||
दिल जलें नही ,दिल रोशन हों,हर मानव के संग नारी हो |
फुलझड़ियाँ खुशियों की फूटें,ऐसी ”नीरज” दीवाली हो ||
मैं तो जलकर के उजाला तुम्हें देना चाहूं।
आपके गम को मैं खुशियों में बदलना चाहूं।।
लक्ष्मी गणपति कुबेर की कृपा रहे तुम पर,
आपकी कीर्ति से नीरज मैं चमकना चाहूं।।
दीप से अंधकार को सभी मिटाएंगे।
अपनी खुशियों की फुलझड़ी में नाचे गाएंगे ।
दूर दुर्भाग्य हो जीवन का कुहासा सारा,
नेह की बत्तियां मनदीप में जलाएंगे।।
कोने कोने को जगमगाना है
दीप उत्सव हमे मनाना है।
भावनाओ की दिया-बाती से,
मन के अंधियार को मिटाना है।।
जगमग जगमग दीप जले है दीवाली आई।
रोग शोक दुःख हरने को धन त्रयोदशी आयी।
फुलझड़ियाँ मस्ताब् पटाका घर घर में फूटे,
सुख वैभव समृद्धि दिलाने माँ लक्ष्मी आई।।
मैं तेरा दीप हूँ तू उजाला मेरा।
मेरे मनमीत तुम ही शिवाला मेरा
सारे संसार में तू अतुलनीय है.,
किससे उपमा करूँ तू निराला मेरा।
आशुकवि नीरज अवस्थी