मां मेरी औकात नहीं
क्या लिखूं मैं जिसके बारे में,
उस ने मुझे खुद लिखा है ।
होते हैं वो किस्मत वाले,
जिन्हें मां की सेवा करने का मौका हैं।।
मां मेरी औकात नहीं……..
मां मैं आज खुश हूं,
ये सब तेरी बदौलत है।
मां तूने मेरे लिए सब निस्वार्थ किया,
सदियों से तक तेरा ऋणी रहूंगा।।
मां मेरी औकात नहीं……..
मां दुःख तूने कितने झेले हैं,
मुझ जैसे पागल को पालने में।
दुनिया की नजरों में मैं कैसा भी हूं,
तेरी नजरों में हमेशा तेरा लाल हूं
मां मेरी औकात नहीं………
मां वह दिन आज भी मुझे याद है,
जब घर में कुछ था नहीं खाने को।
खुद तूने भूखे पेट रहकर मां ,
खाना मुझे पड़ोस से दिलाया था।।
मां मेरी औकात नहीं……….
मां कितनी भी मैं तेरी सेवा करूं,
जो तूने किया उसका एक कण भी नहीं।
मां तू तो सब देवों की भगवान है,
मां तू मेरे संसार की भगवान है।।
मां मेरी औकात नहीं………
— अवधेश कुमार निषाद मझवार