दीपावली के दिन लक्ष्मी ,गणेश के साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है| विघ्न विनाशक ,मंगलकर्ता ,ऐश्वर्य ,भोतिक सुखों ,धन -धान्य ,शांति प्रदान करने के साथ साथ विपत्तियों को हरने वाले लक्ष्मी ,गणेश ,कुबेर का महापूजन अतिफलदायी होता है । प्राचीन ग्रंथों में लक्ष्मी जी के साथ अलक्ष्मी जी का भी उल्लेख मिलता है।अलक्ष्मी जी को “नृति “नाम से भी जाना जाता है तथा दरिद्रा के नाम से पुकारा जाता है ।लक्ष्मी जी के प्रभाव का मार्ग धन -संपत्ति ,प्रगति का होता है वही अलक्ष्मीजी दरिद्रता ,पतन,अंधकार,का प्रतीक होती है ।लक्ष्मी जी और अलक्ष्मी जी (दरिद्रा )में संवाद हुआ । दोनों एक दूसरे का विरोध करते हुए कहने लगी -“मै बड़ी हूँ ।” लक्ष्मीजी ने कहा कि देहधारियों का कुल शील और जीवन मै ही हूँ ।मेरे बिना वे जीते हुए भी मृतक के समान है ।अलक्ष्मी जी (दरिद्रा )ने कहा कि “मै ही सबसे बड़ी हूँ ,क्योंकि मुक्ति सदा मेरे अधीन है । जहाँ मै हूँ वहां काम क्रोध ,मद लोभ ,उन्माद ,इर्ष्या और उदंडता का प्रभाव रहता है । “
अलक्ष्मी(दरिद्रा ) की बात सुनकर लक्ष्मी जी ने कहा- मुझसे अलंकृत होने पर सभी प्राणी सम्मानित होते है ।निर्धन मनुष्य जब दूसरों से याचना करता है तब उसके शरीर से पंच देवता -बुद्धि ,श्री,लज्जा,शांति और कीर्ति तुरंत निकलकर चल देते है ।गुण और गौरव तभी तक टिके रहते है जब तक कि मनुष्य दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलता।अत: दरिद्रे ।मै ही श्रेष्ठ हूँ “।
दरिद्रा ने लक्ष्मीजी के दर्पयुक्त तर्क को सुनकर कहा-“जिस प्रकार मदिरा पीने से भी पुरुष को वैसा भयंकर नशा नहीं होता, जैसा तेरे समीप रहने मात्र से विद्वानों को भी हो जाता है।योग्य, कृतज्ञ ,महात्मा ,सदाचारी। शांत ,गुरू सेवा परायण ,साधु ,विद्वान ,शुरवीर तथा पवित्र बुद्धि वाले श्रेष्ठ पुरुषों में मेरा निवास है।तेजस्वी सन्यासी मनुष्यों के साथ मै रहा करती हूँ । ‘
इस तरह विवाद करते हुए समाधान हेतु ब्रहम्माजी के पास दोनों पहुंची |ब्रहम्माजी ने कहा कि -पृथ्वी और जल दोनों देवियाँ मुझसे ही प्रकट हुई है ।स्त्री होने के कारण वे ही स्त्री के विवाद को समझ सकती है।नदियों में भी गौतमी देवी सर्वश्रेष्ठ है।वे पीडाओं को हरने वाली तथा सबका संदेह निवारण करने वाली है |आप दोनों उन्ही के पास जाएँ । “
लक्ष्मीजी और दरिद्रा बड़ी कौन है के विवाद को सुलझाने हेतु गौतमी देवी के पास पहुँची । गौतमी देवी(गंगाजी )ने कहा कि ब्रह्श्री ,तपश्री ,यग्यश्री ,कीर्तिश्री ,धनश्री ,यशश्री ,विधा ,प्रज्ञा ,सरस्वती ,भोगश्री ,मुक्ति ,स्मृति ,लज्जा ,धृति ,क्षमा ,सिद्धि ,वृष्टि ,पुष्टि ,शांति ,जल ,पृथ्वी ,अहंशक्ति ,औषधि ,श्रुति ,शुद्धि ,रात्रि ,धुलोक ,ज्योत्सना ,आशी ,स्वास्ति ,व्याप्ति ,माया ,उषा ,शिवा आदि जो कुछ भी संसार में विद्दमान है वह सब लक्ष्मीजी द्धारा व्याप्त है ।ब्राहमण ,धीर क्षमावान ,साधु ,विद्द्वान ,भोग परायण तथा मोक्ष परायण पुरुषों जो -जो श्रेष्ठ सुंदर है वह लक्ष्मी जी का ही विस्तार है। दरिद्रा ,क्यों तू लक्ष्मीजी के साथ स्पर्धा करती है -‘जा चली जा यहाँ से’ | कहकर दरिद्रा को भगा दिया ।
इसी कारण तब से गंगाजी का जल दरिद्रा का शत्रु हो गया।कहते है कि तभी तक दरिद्रा का कष्ट उठाना पड़ता है|जब तक गंगाजी के जल का सेवन न किया जाए इसीलिए गंगाजी के जल में स्नान और दान करने से मनुष्य लक्ष्मीवान तथा पुण्यवान होता है ,साथ ही उस पर लक्ष्मीजी का आशीर्वाद भी बना रहता है ।
दीपावली पर्व पर लक्ष्मी पूजन के समय दीपक के प्रकाश में आत्ममंथन ,आत्मलोचन ,आत्मोउन्न्ति ,को प्राप्त करने की दिशा में अंधकार को उखाड़कर प्रकाश की राह पर चलने हेतु अन्यों को भी उन्नति -उजाले की राह दिखाने का प्रयत्न करते आ रहे है ।यही प्रकाश का आगमन ,आराध्य की तरह सर्वत्र पूजनीय तो है ही साथ ही लक्ष्मी ,गणेश ,कुबेर के स्वागत हेतु दीपों को जलाना दिवाली पर उनके आगमन के शुभ सूचक होते है ।
— संजय वर्मा “दृष्टि”