कुछ ख्याल यूँ ही आ गए
कुछ पुराने से
ख्यालों का यूँ ही
आ जाना
जाने अनजाने
कभी कभी तो
रुला भी जाना
अजीब सा लगता है ,,,
आखिर तुम आते ही क्यों हो ?
कोई निमंत्रण नहीं
कोई इरादा नहीं
बस सिर्फ हलकी सी कसक
और तुम तक सन्देश
क्या वाकई मेरे हबीब हो तुम
तो फिर इतनी जल्दी
जाते ही क्यों हो ?
सोचता हूँ
कई बार
कैद कर लूँगा तुम्हे
दिले-खुर्रम में
नहीं दूंगा
वहां से फिर जाने
बस यही इल्तजा होगी
कुछ करो ऐसा
आये सिर्फ वहीँ ख्याल
जो मेरा दिल चाहे
क्या ऐसा हो सकता है ?
दिले-खुर्रम-(प्रसन्न मन )
राजेश कुमार सिन्हा