दीये से बाती कह रही दीवाली आज है
पटाखें बता रहे हो जेसे ये सरगमों का राज है
घर बन गए दूल्हे ,गाडियां बनी हो दुल्हनियां
सजी है द्वारे द्वारे उनके लिए रंगोलियां आज है
आकाश में लगते चाँद -सितारों से दीये खास है
दीयों का जमीं पर जलने का भी तो एक राज है
मानाकि रौशनी से भागता है दु:खों का अँधेरा
दीयों की रोशनी में शुभकामनाए देने का यही तो रिवाज है
टिम -टिमाते हुए दीयों से घर- घर में रोशनी है
इसीसे धरा पर खुशियां मनाती दीवाली का हमको नाज है
— संजय वर्मा “दृष्टि”