ग़ज़ल
अदावत बेसबब मत कीजिये अच्छा नही लगता,
ये नफरत बेसबब मत किजिये अच्छा नही लगता।
चलो मंजूर कीं ये बेसबब की नफ़रतें लेकिन,
मुहब्बत बेसबब मत कीजिये अच्छा नही लगता।
मेरी पलकों के अंगारे तेरे दामन न झुलसा दें,
शरारत बेसबब मत कीजिये अच्छा नही लगता।
सलाखें तोड़ दीं तो ये रिहाई मार डालेगी,
जमानत बेसबब मत कीजिये, अच्छा नही लगता।
कोई तो वज़ह हो गर इश्क़ की तोहमत मेरे सर हो,
ये उल्फ़त बेसबब मत कीजिये अच्छा नही लगता।
हुकूमत वो है जो आवाम के दिल को फतह कर ले,
हुकूमत बेसबब मत कीजिये अच्छा नही लगता।
सबब हम पूँछ ही बैठे अगर इस बेरुखी का तो,
शिकायत बेसबब मत कीजिये अच्छा नही लगता।
मेरी जां आपका ये दिल अमानत है हमारी तो,
हिफ़ाजत बेसबब मत कीजिये,अच्छा नही लगता।
कभी पत्थर उठा लेना, कभी इक फूल हो जाना,
ये हरकत बेसबब मत कीजिये अच्छा नही लगता।
—अभिलाषा सिंह