ग़ज़ल
अपनी बर्बादी के मंज़र नही देखे जाते,
आंख में ठहरे समंदर नही देखे जाते
गम से कुम्हलाए हुए चेहरों को देखूं कैसे,
जाने क्या बात है? क्यों कर ,नही देखे जाते।
जाफ़रानी सी महक आती थी जिनसे पहले,
उनके बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते।
हाथ में जो लिए गुलदान फिरा करते थे,
अब उन्ही हाथ में खंजर ,नही देखे जाते।
राह में आते हैं तूफ़ान चलो मान लिया,
रोज ऐसे ही बवंडर, नही देखे जाते।
छोड़ आये थे जिन्हें हम कभी सदियों पहले,
अब पलटकर वो गली-घर नही देखे जाते।
जिनके क़िरदार से आती थी वफ़ा की खुशबू,
छुप के डसते हैं वो विषधर, नही देखे जाते।
दिल है शीशे का मेरा तुमको छुपालूँ लेकिन,
हाथ में लोगो के पत्थर नही देखे जाते।
— अभिलाषा सिंह