कब बदलोगे भाई
सुबह-सुबह उंघ रहे थे
एक आवाज कानों से टकराई।
कितना सोते हो आजकल
देखो कितनी धूप निकल आई।
कुछ फिक्र कर लो गांव शहर की
सिर्फ लेते हो क्यों अंगड़ाई।
दुनिया बदल रही है तेजी से
पर तुम कब बदलोगे भाई।
आए हो घर के भाग्य बदलने
पर छोड़ नहीं रहे चारपाई।
कभी तो कॉपी-किताब निकालो
देखो धूल की परत जम आई।
याद तुम्हें है कब गए थे कॉलेज
क्यों न तुमने आई कार्ड बनवाई।
नौकरियां खत्म हो रही तेजी से
जब से पूंजीवादी सरकार है आई।
फिर भी क्यों नहीं सुधर रहे हो
कहीं तो किस्मत होती अजमाई।
शायद तकदीर बदल जाए
बंद हो जाए तुम्हारी जग हंसाई।
कब तक पड़े रहोगे बिस्तर पर
कुछ करो तुम्हारी भी हो बड़ाई।
जब समय निकल जाएगा तो
फिर बंद न होगी तुम्हारी रुलाई।
सफलता उसे ही मिलती है
जाके पांव में फटता है बवाई।
मान लो बात गौतम की तुम
इसी से होगी तुम्हारी भलाई!!!
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम