भ्रूण एक आवाज…
प्यार तुम्हारा दो जिस्मो का एहसास तुम्हारा,,
ऐसे ना मारो मै संसार तुम्हारा,,
अंश वंश हूं तुम्हारा,,
ऐसे ना धिक्कार करो हमारा,,
क्यों बनाया मुझे मनोरंजन की शाख?,,
क्या कर दोगे मुझे कोख में ही राख?,,
मां तेरा कोमल हृदय कैसे पत्थर हो गया,,
अभी गर्भ में ही था वध कैसे हो गया?,,
ये दो जिस्मो की नादानी,,
क्या यही मेरी क्रूरता भरी कहानी,,
अगर तुम्हारे मा बाप ने ये भ्रूण हत्या की होती,,
तो आज मैने ये बात ना उठाई होती,,
अगर तुम्हारी जवानी ना जलती,,
शायद मेरी ना होती गलती,,
ना मुझे आज ये बात खलती,,
–– इंजी. सोनू सीताराम धानुक “सोम”