तू बोल रूद्राक्षी!
क्यों! आज व्यथा भारी है तुम पर
क्या रावण छल के अवशेष दिखे फिर!
तू बोल रूद्राक्षी!तू बोल!
जग मनाये चाहे दीवाली
राम के घर आने पर
मैं करूँगा शोक प्रकट
सीता के दुःख पर।
क्यों अवसाद के कण
आज तुम्हारें जीवन में।
क्या फिर!कोई दुश्शासन दुर्योधन
जीवन की लाली छीनेगा!
तू बोल रूद्राक्षी!तू बोल!
क्यों! जीवन निस्तेज तुम्हारा
क्या! प्राणों पर नागों का फेरा
मैं एक बेचारा कहता तुमसे
तू जाग रूद्राक्षी!तू जाग!
मुझे प्रिय द्रौपदी का तेज है
अब तू भी धर ले कालरूप!
अश्रु का जीवन क्यों जीना!
अनय का विष क्यों पीना?
क्यों चिन्ता भारी है तुम पर
क्या! विषैले नर के अवशेष दिखे फिर!
तू बोल रूद्राक्षी! तू बोल!