ग़ज़ल
सितम जब वो मेरे सह गयी
बात सीधे जिगर तक गयी।।
दूसरों से गिला कुछ नहीं,
मुझको अपनी नज़र लग गयी।।
इश्क करने चला था मगर,
बात ख्वाबों में ही रह गयी।।
आंसू सम्भले नहीं बह गये,
जाने धीरे से क्या कह गयी।।
हमने रोका बहुत न रुका,
आज कैसी हवा बह गयी।।
बात पर्दे में की थी मगर,
सबको कैसे खबर लग गयी।।
शेष कुछ भी बचा न यहां,
दीप की रौशनी रह गयी।।