प्यारे बच्चो! तुम्हें बताऊं, दिवाली की कथा सुनाऊं।
दिया जलाकर घर सजाऊं; खुशियों का यह पर्व मनाऊं।।
बहुत पहिले अवधपुरी में, दशरथ के घर जन्मे राम।
पाप-ताप सब दूर किये; सफल हुए तब सबके काम।।
झूठा-पापी था इक रावण, उसके साथ लड़े प्रभु राम।
मार रावण को रामचन्द्र ने; बढ़ाया अच्छाई का है मान।।
इसी जीत को विजयादशमी, कह कर करते सारे काम।
हराकर बुराई को अच्छाई से; अयोध्या लौटे जब सीताराम।।
दीपमाला से सजी अयोध्या, स्वागत करता पावन धाम।
तभी से दिवाली शुभ उत्सव; घर-घर मनाते करते काम।।
दीप जलाना कर ज्ञान बढ़ाना, हंसी-खुशी के सारथी राम।
पटाखे जलाकर शौर मचाना; करना कभी ना ऐसा काम।।
धुंआ पटाखों का जब उड़ता, प्रदूषित होते सारे काम।
जगमग-जगमग दिया जलाना; सबसे अच्छा है यह काम।।
गरीब जनों की सहायता करना, देते शिक्षा यही प्रभु राम।
होगा उत्सव दिवाली का यह; मिलकर करें हम अपना काम।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’