कविता

बैठा पंछी एक डाल पर

मिला मुझे रास्ते में ,बैठा पंछी एक डाल पर।

बना रहा था घोसला ,तिनका तिनका जोड़ कर।।

आयी तेज आंधी और ,तिनके बिखर गए जमीं पर।

टूटा नहीं उसका हौसला ,बैठा नहीं वो हार कर।।

उड़ान भरी फिर से उसने , आसमां में फैला के पर।

लाए कई  बार तिनके ,रखा पेड़ की एक डाल पर।।

आखिर बनाया अपना घर  ,चुनौतियों को पार कर।

संघर्ष है जीवन का एक अंग ,रखो ध्यान अपने काम पर।।

मुश्किलें तो आती रहेंगी,   जिंदगी के हर मुकाम पर।

पूरी होंगी सारी ख्वाहिशें ,कई बाधाओं को भी पार कर।।

सिख दे गया मुझे जिंदगी की, बैठा पंछी एक डाल पर।

— स्वाति सौरभ

स्वाति सौरभ

गणित शिक्षिका पता - आरा नगर, भोजपुर, बिहार