लव जिहाद, चुनाव एवं कोरोना
आनेवाले दीपावली पर्व से उत्साहित मुहल्ले के कुछ नवयुवक भूल गए कि लॉक-डाउन आंशिक गया है और कोरोना तो बिल्कुल नहीं गया है। यह घोषणा भी भूल गए कि जबतक दवाई नहीं, तबतक ढिलाई नहीं। उन्होंने मुहल्ले के राममंदिर में सामूहिक रूप से ‘दीपोत्सव’ कार्यक्रम करने की योजना बना ली।दुखी आत्मा घबराए।इस कोरोनाकाल में ऐसी सार्वजनिक योजना ? यह तो राज्य सरकार की खुली अवहेलना है।
युवाओं ने समझाया, कार्यक्रम में जो भी आएगा,मास्क पहन कर आएगा। सभी दो गज की दूरी बनाकर रखेंगे।दस वर्ष की उम्र से कम के बच्चे और साठ वर्ष की उम्र से ज्यादा के बुजुर्गों को कार्यक्रम में शामिल नहीं किया जाएगा। सभी के मोबाइल में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड रहेगा। ब्लूटूथ ऑन रहेगा। इधर-उधर थूकने की आजादी भी नहीं रहेगी। जैसा कि लोगों की अक्सर रहती है। सभी अपने साथ सेनेटाइजर लेकर आएंगे और हर आधे घंटे के बाद हाथ साफ करते रहेंगे। यहां हाथ का मतलब कांग्रेस पार्टी का हाथ नहीं है।अब आप ही बताइए इतनी सावधानी के बाद कोरोना क्या कर लेगा हमसभी का ? ऐसे भी पचास-साठ की उपस्थितिवाला सार्वजनिक कार्यक्रम तो हम कर ही सकते हैं। प्रशासन ने तो सौ तक की छूट दे रखी है।
दुखी आत्मा बोले,प्रशासन के मूड का क्या ठिकाना ? देखा नहीं तुम लोगों ने,बिहार के मुंगेर में पुलिस वालों ने माता दुर्गा के भक्तों पर कैसे जमकर लाठियां बरसायी। कहते हैं गोलियां भी चलाई।
मुहल्ले के सभी नवयुवक दुखीआत्मा की कमजोरी जानते थे, उन्होंने चारा डाला, ‘सर उस कार्यक्रम में आपको आधे घंटे की स्पीच भी देनी है।’
यह सुनते ही दुखीआत्मा ऐसे राजी हो गए, जैसे पार्टी के विद्रोही नेता चुनावी टिकट प्राप्तहोने की बात सुनते ही राजी हो जाते हैं। इतना ही नहीं बढ़िया कार्यक्रम के नाम पर उन्होंने गाँधीछाप दो पत्ती भी ढीली कर डाली।अब वे सोचने लगे, अपनी स्पीच में वे कौन-कौन से समसामयिक विषय उठाएंगे ? सबसे पहले उनका ध्यान बिहार चुनाव में दिये जारहे नेताओं के जातिवादी भाषणों पर गया।उनको अपने एक मित्र की टिप्पणी याद आ गयी, ‘अगर वोट दोगे जात में तो नौकरी पाओगे गुजरात में।उनका ध्यान करणी सेना के शेरों की ओर भी गया।जो बेटी निकता के मुस्लिम हत्यारों को फांसी देने की या फ़िर सरे-आम गोली मारदेने की मांग कूद-कूदकर कर रहे थे।
दुखी आत्मा ने सोचा, ये सरफिरे संप्रदाय विशेष के कुछ नवयुवक भी बड़े नालायक हैं,। अपनी करतूतों से अपने आकाओं की बोलती बंद कर देते हैं, ख़ासकर धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे की दुहाई देने वालों की। अभी-अभी पुरानी पार्टी के क्रांतिकारी भाई-बहन हाथरस में जबरदस्ती घुसकर महिला सुरक्षा और दलित-उत्पीड़न के नाम पर खूब हल्ला मचायेहुए थे। खूब फोटो खिंचवा रहे थे,खूब ट्वीटकर रहे थे,पर जैसे ही हरियाणा के बल्लभगढ़ में निकिता तोमर की हत्या क्या हुई,लव जिहाद और धर्म-परिवर्तन का ऐंगल क्या आया,उनके मुंह में दही जम गया। अभिव्यक्ति की आज़ादी और मानवतावादी गैंग भी बिल में घुस गये ।अब न लोकतंत्र खतरे में था और न संविधान।अब न बेटी बचाओ रैली की आवश्यकता थी और न इंडिया गेट पर कैंडल मार्च निकालने की।
दुखी आत्मा का ध्यान पाकिस्तानी संसद की ओर भी गया। जिसमें एक केंद्रीय मंत्री ने साफ-साफ स्वीकार किया था कि भारतवर्ष पर पुलवामा हमला करना पाकिस्तान की बहुत बड़ी सफलता थी। इस बात पर पूरे पाकिस्तान को गर्व होना चाहिए।और कितना प्रमाण चाहिए भारत में पल रहे पाकिस्तान के शुभचिंतकों को कि पाकिस्तान एक आतंकवादी मुल्क है।उनका ध्यान भारतीय फौजी अभिनंदन की पाकिस्तान से रिहाई वाले प्रसंग की ओर भी गया, जिसमें एक पाकिस्तानी सांसद ने स्वीकारा था कि हिंदुस्तान के हमले की आशंका से डरकर अभिनंदन को छोडा़गया।वाह, बहुत खूब ! उनका ध्यान जिहादी-आतंकवाद की ओर भी गया।भारत की तरह फ्रांस भी एक बार फिर इस जिहादी-आतंकवाद का शिकार हुआ था।दाद देनी पड़ेगी फ्रांस के राष्ट्रपति की, जिन्होंने जिहादी-आतंकवाद के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की। और जनता ने भी भरपूर समर्थन किया।अब भारतवर्ष की आमजनता को भी इतना ही मजबूत और संगठित होने की आवश्यकता है।अगर ऐसा होगया तो राष्ट्रद्रोही ताकतें और निहित स्वार्थीतत्व अपने आप दुबक जाएंगे।
तभी श्रीमती जी ने दुखी आत्मा के सामने चाय की प्याली रखते हुए टोका, ‘निठल्ले बैठे क्या क्या बड़बडा़ए जा रहे हो? तुम्हारे चेले-चपाटे तो कबके चले गए।’
दुखीआत्मा वैचारिक तंद्रा से बाहर निकलते हुए बोले- ‘मुह्ल्ले के नवयुवकों ने एक दीपोत्सव कार्यक्रम करने की योजना बना ली है। उस अवसर पर दियेजाने वाले अपनी स्पीच में कौन-कौन से समसामयिक विषय उठाऊंगा,दरअसल मैं उसी पर विचार कर रहा था।’
— अजय कुमार प्रजापति