हूं तेरे इतंजार मे
तेरे इतंजार मे
कभी तो आओगी
इस नाचीज को
अपना बनाओगी
मै तुमसे मिलने
के लिए हूं बेकरार
अब आ भी जाओ
मत करो तकरार
तुम्ही मेरी चाहत हो
तुम्ही मेरी पूजा
अच्छा न लगे मुझे
तुम्हारे अलावा कोई दूजा
मुझे मालूम है कि
मेरा इतंजार
व्यर्थ नही जायेगा
एक दिन जरुर
तुम्हे मुझपर
तरस आयेगा
क्या है तुम्हारी मजबूरी
मुझे बताओ
अब इस आशिक को
और न सताओ
अब तुम्हारे बिना
रहा नही जाता
तुम्हारी जुदाई का गम
अब सहा नही जाता
यह जन्म क्या
सात जन्म तक
तुम्हारा इतंजार करुंगा
मेरा प्यार सच्चा है
तुम्हे पाकर रहूंगा
— डाॅ प्रताप मोहन “भारतीय’