ईश्वर के रूप मनोकामनाओं का आशीर्वाद देना ही पेड का कर्तव्य है
वृक्षों को प्राचीन समय से लोग पूजते आ रहे है ,इसके पीछे भीषण गर्मी मे ठंडी सुखद छाँव प्राप्त होना, शुद्द हवा ,उदर- पोषण, सांसारिक जीवन के अंतिम पड़ाव में दाहसंस्कार में उपयोगी बनना ,पृथ्वी के तापमान को कम व् वर्षा के बादलों को अपनी और आकर्षित कर वर्षा कराना ( उदहारण -चेरापूंजी ) ,दैनिक जीवन की आवश्यकता की आर्थिक रूप से पूर्ति करना एवं ईश्वर के रूप मनोकामनाओं का आशीर्वाद देना ही पेड का कर्तव्य है |फिर भी लालची इन्सान पेड को काटने हेतु अपने स्वार्थ को सिद्द करने मे लगा रहता है | राजस्थान के डूंगरपुर जिले के हर गांव में अब सबसे पुराने पेड़ को जननी वृक्ष का दर्जा दिए जाने की पहल वृक्ष के सम्मान में प्रशंसनीय पहल की गई है ।वृक्षो की सुरक्षा और इनकी देखभाल इस योजना में बरगद ,खेजड़ी पीपल ,आम ,महुआ ,नीम ,सेमल, गुलर ,मोलश्री ,रायणी ,अर्जुन ,इमली ,कल्पवृक्ष आदि को ( मदर ट्री ) जननी के रूप में चयन किया गया है ।ऐसी योजना हर प्रदेश में लागु होना चाहिए । मिटटी का कटाव रोकने हेतु नदी के तट पर फलदार वृक्ष ज्यादा मात्रा में लगाया जाना चाहिए जिससे परिक्रमा वासी,नदी में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को गर्मी में सुखद छांव एवं फल की प्राप्ति हो सकें । देखा जाए तो वर्तमान में पेड से प्राप्त होने वाली सभी चीजे महँगी है | प्राचीन वृक्षों को जो अंदर से पोले या गिरने की कगार पर हो उसका उपचार भी किया जाना चाहिए । नए पौधारोपण इस तरह करे ताकि बडे होने पर उसे काटा ना जा सके | पौधारोपण करते समय उसकी सुरक्षा का इंतजाम पहले से करे। यदि हो सके तो अपनों की स्मृति में या उसे गोद लेकर पौधारोपण का संकल्प लेवे तो ये पुनीत कार्य सफल सिद्ध होगा । ऋतुराज वसंत के आगमन पर वृक्षों पत्तियां अभिवादन के लिए जमीन पर बिछ जाती है । टेसू के फूल खिलने लगते है |आमों के वृक्ष पर आए मोर (आम के फूल ) ऐसे लगते मानों जैसे सेहरा बांध रखा हो ,नव कोपले स्वागत गीत गा रही हो । ऋतुराज वसंत गुलाबी ठंड प्रकृति में नया रस घोलती है ।वृक्ष .वसंत के सूचक और हमारे जीवन में उपयोगी,पूजनीय रहे है । सूखे पहाड़ो पर बिना पत्ती के वृक्ष अपनी वेदना किसे बताये बारिश होगी तभी इन वृक्षों पर हरियाली अपना डेरा जमा सकेगी । बस इन्हें इन्सान काटे ना |क्योकि होली के लिए चोरी से ऐसे वृक्षों को बेजान समझकर ,बिना अनुमति के लोग काटने का प्रयत्न करने की फ़िराक मे रहते है |वृक्षों से ही जंगल, पहाड़ो की सोंदर्यता है |वृक्ष ही इन्सान के मददगार एवम अंतिम पड़ाव तक के साथी होते है व पशु,पक्षियों को आसरा प्रदान करते है |अत: बिना पत्तियों के वृक्षों को बेजान समझकर होली पर ना काटें| नासा के वैज्ञानिकों ने 137 वर्षो में तीसरा सबसे गर्म महीना रहा का पिछले वर्ष 2016 के वैश्विक तापमान का मासिक विश्लेषण किया । देखा जाए तो मौसमों में ज्यादा बदलाव यानि अधिक गर्मी के करीब पहुँचना चिंतनीय सवाल खड़े करता है क्या मौसम के निर्धारित माह अपने माह को आगे बढ़ा रहे है ?पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यावरण मे बदलाव का बुरा असर लकड़ी पर भी हो रहा है |उसकी प्रकृति बदल रही है और उससे बनने वाले वाधयंत्रों मे वो मधुर स्वर नहीं पायेगे , जो की पहले पाते थे । ये एक चिंता का विषय है |पर्यावरण मे बदलाव को सुधारने हेतु कारगर कदम उठाना होगा ,इस हेतु वृक्षारोपण ज्यादा करे एवं हरे भरे वृक्षों को कटने ना दे, |ताकि वाधयंत्रों मे वो मधुर स्वर और ऋतु चक्र सही हो सके|पृथ्वी को बचाने के लिए कुछ तो हमें करना होगा| पूर्व के वर्षो में जलवायु पर हुए डरबन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन मे जलवायु परिवर्तन के संबध मे किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुच पाने से जनाक्रोश भी उभर कर सामने आया था | आर आर इ के अनुसार सन २०३० अंत गाज उष्ण देशीय (ट्रापिकल ) जंगलों पर गिरेगी जो की पर्यावरण के हिसाब से गंभीर एवं चिंतनीय पहलू है| अधिक जंगल काटने से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन .अधिक मौसम परिवर्तन और सबके लिये कम संपन्नता ही प्राप्त होगी | ये सर्वविधित है की वृक्षों से ताप का नियंत्रण होता और वायु मंडल की विषाक्तता भी कम होती है | जितने अधिक वृक्ष होगें वातावरण उतना ही शुद्ध एवं स्वच्छ होगा |वृक्षों होने से वन्य प्राणियों की जीवन सुखद होगा | भविष्य मे हरित क्रांति को विलुप्त होने से बचाने हेतु वर्षा ऋतू के समय वृक्षारोपण के पुनीत कार्य में भागीदारी निभाने की सोच विकसित करें |
— संजय वर्मा ‘दृष्टि’