आशादीप
मालती का आज विद्यालय में पहला दिन था।वह पहले दिन ही देर से नहीं पहुँचना चाहती थीं।उसने एक रिक्शा वाले को धीरे से आवाज लगाई।हाँ मैडम जी कहाँ छोड़ दूँ,आपको?मुझें विद्यालय जाना हैं। विद्यालय, मैडम जी दस रुपए लगेंगे रिक्शा वाले ने गम्भीर होते हुए कहा।दस रुपए तो बहुत ज्यादा हैं,भईया।नहीं मैडम जी,कहाँ ज्यादा है विद्यालय यहाँ से तीन किलोमीटर दूर हैं?आज कल महँगाई भी तो बहुत हो गई हैं। इस महँगाई ने तो हम मजदूरों की कमर ही तोड़ कर रख दी।
अच्छा-अच्छा अब ज्यादा बातें मत बनाओ।जल्दी चलो,कहीं मुझें देर ना हो जाए? वह मन ही मन विचार कर रही थी कि महँगाई ने सचमुच कमर तोड़ कर रख दी हैं।सच ही तो कह रहा हैं रिक्शा वाला।मालती को सड़क किनारे लगे पेड़-पौधे बहुत सुन्दर लग रहे थे।ठण्डी-ठण्डी हवा उसे शीतलता प्रदान कर रही थी।
मैडम जी,आपका विद्यालय आ गया हैं।रिक्शा वालों ने उसे पुकारा तो उसने उसे दस रुपए का नोट थमा दिया।उसने एक नजर घड़ी पर डाली।उसने अपना बैग सम्भाला और दौड़ते हुए विद्यालय के गेट की तरफ भागी।वह पहले दिन देर नहीं करना चाहती थी।चपरासी ने गेट पर ही उसे मैडम गुड- मॉर्निंग कहा।गुड मॉर्निंग उसने सहज होते हुए कहा।विद्यालय में चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल लगे थे। लाल गुलाब,पीले गैंदे के फूल, सफेद फूल जैसे उसे ही देख रहे हो। मन प्रसन्न्ता से फूला नहीं समा रहा था।प्रकृतिक सौंदर्य हम सभी को अपनी ओर आकर्षित करता ही हैं।उसके कदम ऑफिस की ओर बढ़ रहे थे।पर ध्यान अभी भी फूलों की सुंदरता पर अटका हुआ था।
सर,क्या मैं अन्दर आ सकती हूँ?!यस प्लीज,मैडम।प्रिंसीपल ने मुझ पर सरसरी सी नजर डाली,मालती जोशी।जी,सर। टेक योर सीट,थैंक यू सर।मैडम गो टू टेंथ क्लास, रूम नंबर सेवन।ओके सर। मैं रूम नम्बर सात को ढूंढने निकल पड़ी।मैं फूलों से बनी क्यारी के साथ-साथ चल रही थी।कमरे के ऊपर सात नम्बर देखकर मैं ठहर गई। जैसे ही मैं कमरे में पहुंची विद्यार्थियों ने मेरा जोरदार स्वागत किया। एक लंबे से लड़के ने फूलों की माला मेरे गले में डाल दी।और झुक कर मेरे पैरों को छुआ।मैडम ये हम सभी की तरफ से।थैंक्स,मैंने सभी को शांतिपूर्ण बैठने का इशारा किया। क्लास में दो लाइनों की बनी थी। एक तरफ लड़के, दूसरी तरफ लड़कियाँ थी।ये लड़के-लड़कियाँ भी फूलों की तरह मुझें अपनी ओर खींच रहे थे।सभी मुझें कनखियों से देख आ रहे थे।शुरू में, जब हम किसी को जानते नहीं है तो एक तरह का कौतुहल बना रहता है।इंसान हमेशा सब कुछ जान लेना चाहता हैं।और विद्यार्थी जीवन तो बहुत ही जिज्ञासा पूर्ण होता है।हमारे जीवन से जिज्ञासा कभी खत्म नहीं होती।
आप सभी अपना-अपना परिचय देंगे।और अपनी-अपनी रुचियाँ भी बताएंगे।सभी की आवाज एक साथ गूंज उठी,यस मैडम!एक लड़की बोली मैडम पहले आप अपने बारे में बताए।
मेरा नाम मालती जोशी हैं,मैं तुम्हारी हिंदी की टीचर हूँ।मुझें साहित्य बहुत पसंद हैं।मैंने अपना संक्षिप्त परिचय दिया।और कुर्सी पर बैठ गई।सभी ने तालियाँ बजाई।एक लड़की ने खड़े होकर कहा, मैडम हम सभी बहुत खुश हैं।आपके बारे, आपके आने से पहले मुख्याध्यापक सर हमें सब कुछ बता दिया था।
सर कह रहे थे, आप बहुत ही प्रतिभाशाली अध्यापिका है।उन्होंने आपकी उपलब्धियों का भी जिक्र किया था। उन्होंने हमें यह भी बताया था कि आप ज्ञान का भंडार है। यह हमारे विद्यालय के लिए गर्व की बात है कि आप जैसी प्रतिभाशाली टीचर हमारे बीच में है। सर ने कहा था कि हम सभी बड़े ही भाग्यशाली है।जो हमें आप से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्राप्त हुआ। मेरा मन अंदर ही अंदर फूलों की तरह खिल गया था। विद्यार्थियों के चेहरे की गुलाबों की तरह चमक रहे थे।ये बच्चे मुझें तरह- तरह के गुलाब लग रहे थे।मुझें लग रहा था कि जैसे मैं क्लास में नहीं फूलों की बगिया में हूँ। सभी विद्यार्थियों का परिचय पाकर मन गदगद हो गया था।सभी की दिशाएं अलग- अलग थी। कोई डॉक्टर,तो कोई अपना बिजनेस करना चाहता था। घंटी की आवाज सुनकर क्लास में बहुत शोर शुरू हो गया था।
मैं स्टाफ- रूम में पहुंची, वहाँ भी मेरा तालियों के साथ स्वागत किया गया। सभी के चेहरे पर मेरे लिए आदर-सम्मान साफ झलक रहा था।मालती जी,आप हमारे साथ रहेगी। यह हमारे लिए बेहद खुशी की बात है।आप जैसी प्रतिभाशाली अध्यापिका का साथ पाकर हम धन्य हो गए हैं।नहीं, आप सभी का सहयोग ही मुझे बेहतर करने के लिए प्रेरित करेगा। आज का दिन बेहतर रहा है।मैं भगवान का धन्यवाद कर रही थी।
घर पहुँची तो टेबल पर आज की डाक देख कर मन प्रसन्न हो उठा। पहली डाक माँ की थी।हर बार की तरह ढेर सारे आशीर्वाद दे रही थीं।और साथ ही सलाह भी दे रही थीं।अपना ध्यान रखना किसी को अधिक मुँह मत लगाना।पराया शहर हैं,समझी।
पराया शहर,यह शहर पराया कैसे हो सकता हैं? यही तो रहते हैं बृजेश जी इसी शहर में।वह अतीत में खो गई।इसी शहर में तो इकट्ठे पढ़ते थे हम।मुझें बहुत पसंद थे बृजेश।मन ही मन उन्हें अपना दिल दे बैठी थी। बिना कुछ भी जाने- पहचाने। उनका व्यक्तित्व ही बड़ा कमाल का था। सभी लड़कियाँ उनकी दीवानी थी। उन्हें पाने के लिए, आहे भरती थी। मैं भी तो उन्हें मन ही मन चाहती थी।उन्हें हमेशा के लिए अपने मन में बसा लिया था।जब तक मैं उन्हें अपने मन की बात बता पाती। वह किसी और के हो गए थे।मैं मन मार कर रह गई थी।पता नहीं बृजेश को पता भी होगा या नहीं कि मैंने अपने मन-मन्दिर में उनके प्यार के दीप जला रखें थे।मेरी आँखे आज भी उनका नाम लेते ही नम हो जाती हैं।दूसरा पत्र दीदी का था,पहले नौकरी के लिए बधाई लिखी थीं।फिर ढेर सारा प्यार।मेरे प्रति चिंता जताता उनका पत्र,हमेशा ही मुझें सुकून प्रदान था।अन्त मैं वह कहना नहीं भूली थीं अब तो अपना घर बसा ले,अपने मन में आशा दीप जला ले।कब तक अतीत की यादों में उलझीं रहोगी। विचार जरूर करना, तुम्हारी अपनी कान्ता दीदी।
विद्यालय में मेरा प्रथम वर्ष पूरा हो गया था।विद्यार्थियों के नतीजों ने सभी को चौका दिया था!सभी मेरी भूरी-भूरी प्रशंसा कर रहे थे।हिंदी विषय में राज्य भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया था ललित ने।उसने आकर मेरे पैर छुए,उसने कहा मैडम मेरे पापा भी आए हैं।और तुम्हारी मम्मी,मेरे इस सवाल से ललित का खिला चेहरा एकदम मुरझा गया।मैडम मम्मी नहीं हैं वो तो बचपन में ही, वह और कुछ नहीं कह पाया—-। मैंने उसे गले से लगा लिया।मैडम ये हैं ललित के पापा मिस्टर गुप्ता।उन्होंने हाथ जोड़कर मेरा अभिवादन किया।
आज अतीत मेरे सामने आकर बड़ा हो गया था। सब कुछ मेरे सामने फिल्मी पर्दे की तरह चल रहा था।ललित,मैडम आज शाम को हमारे घर पर पार्टी हैं।प्लीज आप जरूर आना। हमें बड़ी खुशी होगी। साथ ही बृजेश गुप्ता का विन्रम निवेदन भी था। मालती जी आप सपरिवार आमंत्रित हैं। जी,मैं कोशिश करुँगी।
बृजेश जी के घर पर रौनक थी। सभी उसे बेटे की सफलता पर बधाई दे रहे थे।ललित ने अपने पापा का सिर ऊंचा किया था। सभी टीचर उसकी सफलता पर बहुत खुश थे।मैडम चलो,मैं आपको अपने पापा की लाइब्रेरी दिखाता हूँ।मैं ना चाह कर भी उसके साथ चल पड़ी।वहाँ किताबों का भंडार था।मन खुश हो गया था।
बृजेश ने जाते समय पूछ ही लिया, मालती जी आपके पति नहीं आए।मैंने सीधा सा जवाब दे दिया, मैंने शादी नहीं की। क्यों? बस आगे मैं कुछ नहीं बोल सकी।मैं तुम्हें कुछ कहना चाहता हूँ।मैं आपसे शादी—। मैं हैरान रह गई और वहाँ से चल पड़ी।मुझें तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा।मैं तो अभी हाँ कर देना चाहती थीं।पर मैंने अपनी भावनाओं पर काबू रखा।
दीदी- आप से कुछ सलाह करनी थी क्या हुआ,मालती?ब्रिजेश मिले थे,कांता ने खुश होते हुए पूछा,कहाँ?।मालती ने सारी बात कांता दीदी को बता दी।पर क्या ललित तुम्हें माँ के रूप में स्वीकार करेंगा?अगर हाँ,तो तुम्हें देर नहीं करनी चाहिए।
फोन की घंटी बज रहीं थीं।जैसे ही फोन उठाया।मैडम,मैं ललित हूँ।आप कैसी हैं?क्या आप मेरी मम्मी बन सकती हैं?क्या मैं आपको मम्मी कह सकता हूँ।मुझें यकीन ही नहीं हो रहा था।हाँ, मुझें बड़ी खुशी होगी। तुम मेरे बेटे हो,मेरे ललित हो।आज मेरे जीवन में हजारों आशा के दीप एक साथ खिल उठे थे।
मम्मी,उठो ना। ललित मुझें झकझोर रहा था।और ब्रिजेश जी कह रहे थे। सोने दे,अपनी मम्मी को।आज वह फिर आशा- दीप के सपने देख रही होगी।हम सभी खिलखिला कर हँस
पड़े।ललित कह रहा था,मम्मी ये आशा-दीप क्या होते हैं?मैं ब्रिजेश को देख रही थीं–—-।