आत्महत्या कोई हल नहीं
“चिंता से बचें सुखी जीवन जिएँ”
खुद स्वस्थ रहें,दूसरों को भी प्रेरित करें” ….
आज मैं बहुत दिनों बाद ये लेख लिख रहा हूँ पिछला लेख मैंने इसी वर्ष मई में लिखा था कोरोना पर “जेलों में भी हो कोरोना का बचाव”
जिसका प्रभाव भी दिखा और आज पूरे पाँच महीने बाद लिख रहा हूँ कोई लेख शायद आपके सबके लिए ये महत्वपूर्ण साबित हो आप भी अपने परिवार को संतुलित रखें और अवसाद से सदा ही बाहर रखें,
“क्योंकि मात्र जीवन ही सब कुछ नहीं है, जीवन से भी बढ़कर आपका स्वस्थ होना है”
क्योंकि ? आज आप आए दिन देख रहे होंगे कि …
एक तरफ पूरी दुनियाँ में लोग तरह-तरह की बीमारियों से लाखों लोगों की जानें जाती हैं तो एक तरफ लाखों लोग ऐसे भी हैं जो अपनी ही अपनी जान के दुश्मन बन बन बैठते हैं जिसका मूल आधार ही है चिंता से हारकर बहुत लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं जबकि आत्महत्या शब्द ही एक काँटे की भाँति चुभता है फ़िर भी लोग इसे सीने से लगा लेते हैं, कुछ का मानना है कि आत्महत्या को मनचाही मौत भी कह सकते हैं जबकि आत्महत्या एक अनचाही व दर्दनाक मौत है जो सच भी है आत्महत्या के लिए लोग कई तरीके अपनाते हैं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक पूरी दुनिया में प्रति वर्ष करीब 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं…
वहीं औसतन 40 मिनट पर आत्महत्या की एक घटना घटती है. जबकि प्रति 3 मिनट पर इसकी कोशिश की जाती है. हर आत्महत्या की अपनी परिस्थितियाँ और कारण होते हैं. आत्महत्या करने वालों में महिला, पुरुष के अलावा बच्चे भी शामिल हैं, जो डिप्रेशन व तनाव के कारण आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं.
आत्महत्या के कई कारण भी होते हैं और कई ऐसे भी कारण होते हैं जिन्हें कोई समझ भी नहीं पाता है जबकि…
आत्महत्या के मुख्य कारक मानसिक विकार, संस्कृति, पारिवारिक व सामाजिक परिस्थितियाँ व अनुवांशिकी हैं पारिवारिक कलह, वित्तीय कठिनाइयाँ परीक्षा में असफलता, बेरोजगारी, गरीबी, बेघर होना आदि की वजह से तनाव में रहना…
हमेशा अवसादग्रस्तन रहना भी है आत्महत्या की वजह.
कोई गंभीर बीमारी, बहुत बड़ी क्षति होना या किसी अपने को खो देने का गम.
कुछ मेडिकल कंडिशन जैसे किसी बीमारी में ठीक होने की संभावना खत्म हो जाना तक भी व्यक्ति यही कदम उठाने को तत्पर्य हो जाता है लेकिन मैं इनसे सवाल करता हूँ कि आखिर क्या हासिल कर पाओगे ऐसे
आत्महत्या के लक्षण कुछ इस प्रकार बताए गए हैं जो आपके सामने पेश कर रहा हूँ …
अक्सर आत्महत्या से पहले व्यक्ति इसी विषय पर बात करता है और बोलचाल में जाने-अनजाने कहता है कि मैं आत्महत्या कर लूँगा. या फिर इससे तो अच्छा होता मैं मर जाता, व्यक्ति खुद को बहुत ही असहाय महसूस करता है.
जीवन के प्रति निराशावादी विचारधारा आने लगे
व्यक्ति का अक्सर आत्महत्या के तरीकों के बारे में पूछताछ करना.
तेज गति से कम समय में अधिकाधिक लोगों से मिलने का प्रयास करना.
मुलाकात के दौरान लोगों को अलविदा कहकर अंतिम मिलन का संकेत देना
खाने-पीने व सोने की आदतों में बदलाव आना.
डायरी लिखने में अधिक समय गुजारना.
अपनी सबसे फेवरेट चीजों से दूर हो जाना.
व्यवहार में चिड़चिड़ापन आना.
जब किसी व्यक्ति के अंदर अचानक बिना किसी कारण रोने की भावना उत्पन्न होने लगे.
सामाजिक रिश्ते और जिम्मेदारियों से दूर भागना
लोगों से सुसाइड के बारे में बात करना
व्यक्ति में आपराधिक सोच का आना
ये सब तथ्य बड़ी मुश्किल से आप लोगों के बीच ला पाया हूँ इसके बहुत से तथ्य ऐसे हैं जिन्हें मुझे खोजना पड़ा सिर्फ़ो सिर्फ़ आप सबके लिए
अब कुछ ऐसे आँकड़े आप सब के सामने ला रहा हूँ जिन्हें पढ़कर आप थोड़ा परेशान हो सकते हैं…
भारय में हर 4 मिनट में कोई एक अपनी जान दे देता है और ऐसा करने वाले तीन लोगों में से एक युवा होता है यानी देश में हर 12 मिनट में 30 वर्ष से कम आयु का एक युवा अपनी जान ले लेता है। ऐसा कहना है राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का। हाल ही में आए दुर्घटनाओं और आत्महत्या के कारण मौतों पर वर्ष 2009 के रिकार्ड के मुताबिक 2009 में कुल 1,27,151 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 68.7 प्रतिशत 15 से 44 वर्ष की उम्र वर्ग के थे। दिल्ली और अरुणाचल प्रदेश में आत्महत्या करने वालों में 55 प्रतिशत से ज्यादा 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग के थे। दिल्ली में आत्महत्या करने वाले 110 में से 62 तथा अरुणाचल प्रदेश में आत्महत्या करने वाले 1,477 में से 817 इस उम्र वर्ग के थे। रिपोर्ट के मुताबिक, आत्महत्या करने वालों में 34.5 प्रतिशत की उम्र 15 से 29 साल के बीच थी, जबकि 34.2 प्रतिशत की उम्र 30 से 44 साल के बीच थी। इसके अनुसार, देश में रोज 223 पुरुष और 125 महिलाएँ सभी को जोड़कर 347 पुरूष-स्त्री आत्महत्या करते हैं। इन महिलाओं में 69 घरेलू महिलाएँ हैं। एक दिन में 73 लोग बीमारी के कारण और 10 लोग प्रेम प्रसंग मोहब्बत के चक्कर में आत्महत्या करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में आत्महत्या के मामलों में 1.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2008 में आत्महत्या के 1,22,902 मामले थे, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 1,27,151 हो गए । 2009 में देश में सबसे ज्यादा आत्महत्याएँ पश्चिम बंगाल में हुईं। वहाँ एक साल में 14,648 लोगों ने अपनी जान ले ली। उसके बाद आंध्र प्रदेश का स्थान आता है, जहां 14,500 लोगों ने अपनी जान दे दी। फिर नंबर आता है तमिलनाडु (14,424), महाराष्ट्र (14,300) और कर्नाटक (12,195) का। इन पाँच राज्यों में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या देश में आत्महत्या करने वालों की कुल संख्या का 55.1 प्रतिशत है। दक्षिण भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल को मिलाकर देश में कुल आत्महत्या का 32.2 प्रतिशत इन्हीं राज्यों में होता है। 2009 में दिल्ली में 1,477 लोगों ने आत्महत्या की। वहीं उत्तर प्रदेश में आत्महत्या करने वालों की संख्या काफी कम रही। देश की 16.7 प्रतिशत जनसंख्या वाले राज्य में आत्महत्याओं का प्रतिशत केवल 3.3 रहा। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1999 के मुकाबले वर्ष 2009 में आत्महत्याओं की संख्या में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 1999 में आत्महत्या करने वालों की संख्या 1,10,587 थी, जो वर्ष 2009 में बढ़कर 1,27,151 हो गई। आत्महत्या के कारणों में पारिवारिक परेशानियां और बीमारियां सबसे ऊपर हैं। देश में 23.7 प्रतिशत लोग पारिवारिक परेशानी और 21 प्रतिशत बीमारियों के कारण आत्महत्या करते हैं। प्यार-मोहब्बत के चक्कर में सिर्फ 2.9 प्रतिशत और दहेज झगड़ों, ड्रग्स और गरीबी के कारण 2.3 प्रतिशत लोग आत्महत्या करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुष सामाजिक और आर्थिक परेशानियों के कारण तथा महिलाएं व्यक्तिगत और भावनात्मक कारणों से आत्महत्या करती हैं।
ये सारे आँकडे भारत अपराध रिकार्ड ब्यूरो से लिए गए हैं …
“हर समस्या का हल मौत नहीं होता”
“जो हार जाते हैं उनका अस्तित्व नहीं होता”
— शिवम अन्तापुरिया