राजनीति

ड्रेन ऑफ़ वेल्थ – बदस्तूर जारी है।  

भारत से अभी भी और ब्रिटेन और अमेरिका के द्वारा आर्थिक निकास या धन-निष्कासन हो रहा है। जब एक कुशल व्यक्ति ब्रिटेन या अमेरिका की ओर पलायन करता है, तो उसके साथ इन देशों को दुर्लभ कौशल प्राप्त होते हैं, जो भारतीय धन (चाहे उसके पिता या करदाता ने अर्जित किया हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता) पर हासिल किए गए थे। ब्रिटेन जैसे अन्य राष्ट्र जहां भारतीय काम करने के लिए पलायन करते हैं ,इन कौशल के लिए पारिश्रमिक का आधे से अधिक आवास और भारी कर के रूप में  वापस ले लेता है। इन लोगों की बचत ब्रिटेन में ही बानी रहती है, इस तरह से ब्रिटेन कौशल के सभी पारिश्रमिक को अपने पास रखने में सक्षम साबित होता है। यह कौशल ब्रिटेन को इन कौशलों द्वारा विकसित उत्पादों का निर्यात करके दुनिया का पैसा ब्रिटेन ले जाने में मदद करता है। भारत इन युवाओं के निपुणता कौशल पर पैसा खर्च किया है और ब्रिटेन उस पर पैसा बनाता है। अंत में जब भारत में रहने वाले माता-पिता मर जाते हैं तो ये लोग पीढ़ियों की बचत से निर्मित पैतृक संपत्ति बेचते हैं और उस पैसे को ब्रिटेन ले जाते हैं। अगली पीढ़ी जो ब्रिटेन में पैदा हुई होती है, उनमें आश्चर्यजनक रूप से शिक्षा और कौशल की कमी पाई जाती है औरछोटी मोटी नौकरियां करके गुज़ारा कर रही है। ऐसा लगता है कि लंदन में एक अच्छा कमाने वाला भी अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा नहीं दे सकता; अन्यथा ऐसा नहीं होता। इन लोगों के एक या दो पीढ़ियों के वंशज आज तनाव की स्थिति में नज़र आते हैं।

जब एक अमीर व्यक्ति भारत से ब्रिटेन जाता है, तो उसके साथ कई पीढ़ियों की बचतभी जाती है। कम से कम एक व्यक्ति जो अपने साथ ले जाता है वह सरकार द्वारा करों और अत्यधिक कीमत के संदर्भ में लिया जाता है जो वह साधारण आवास के लिए भुगतान करता है जिसे कोई खरीदार नहीं मिला होता अगर भारतीय लोग वहां भारतीय धन नहीं लेते। ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में कर बहुत अधिक हैं, सरकार मूल लोगों के कल्याण के लिए कर आय का उपयोग करती है और भारतीयों को इन कल्याणकारी योजनाओं से लाभ नहीं मिलता है। एक या दो पीढ़ियों के बाद जब भारत से लिया गया पैसा समाप्त हो जाता है तो अनिवासी भारतीयों को अपमानजनक परिस्थितियों में रहना पड़ता है और ऐसे काम करने पड़ते हैं, जिन्हें करने के लिए भारतीयों को अपने नाम के साथ शर्म आती है।

भारत में गरीब राज्यों से अमीर राज्यों में धन का इसी प्रकार से  निष्कासन होता है। बेहतर रोजगार के अवसरों, काम की अच्छी परिस्थितियों, मेहनताने का समय पर भुगतान और अन्य सामाजिक सुरक्षा के कारण, युवा और प्रतिभाशाली लेकिन असहाय और गरीब युवा भारत में अपने गृह राज्यों से महानगरों और आर्थिक और वाणिज्यिक तौर पर सुदृढ़ राज्यों में पलायन कर रहे हैं। यदि एक समानता खींची जा सकती है, तो महानगरीय शहर और आर्थिक रूप से सुदृढ़ राज्य आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों के धन को नष्ट कर रहे हैं और धन की इस तरह से निकासी गरीब राज्यों को एक कंगाली की स्थिति में छोड़ देती है। जो युवा नौकरी और कमाई की तलाश में अपने गृह राज्यों से पलायन करते हैं, अगर वे इसे प्राप्त करते हैं, तो यह पर्याप्त है, लेकिन यदि वे नहीं करते हैं तो उनके पास अपने गृह राज्यों में लौटने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। अपने परिवार की सारी बचत खर्च करने के बाद, ये युवा बिना किसी कमाई के घर लौट आते हैं और अपने गृह राज्यों में काम करने का जोश भी नहीं बचा पाते हैं। इससे दोहरा बोझ पैदा होता है। युवाओं का यह समूह न केवल स्वयं पर बल्कि उस समाज के लिए भी एक बोझ है जिसमें वे वापस लौट रहे हैं। उनका स्वागत करने वाला कोई नहीं है। परिवार और रिश्तेदारों, जो विकल्पहीन होने के कारण दूसरे शहर या राज्य नहीं जा पाते, इन युवाओं को अपनी संपत्ति और घर पर एक आक्रांता के रूप में देखने लगते हैं।

इस निरंतर समस्या का समाधान केंद्र सरकार पर निर्भर रहने के बजाय संबंधित राज्यों द्वारा किया जाना चाहिए। पंचायती राज संस्थान को इस तरह की समस्याओं को कम करने औरअपने गृह राज्यों में  रोजगार और सम्मानित जीवन प्रदान करने के बारे में सोच कर बनाया गया था ताकि प्रवास और विस्थापन की समस्या को समाप्त किया जा सके। राज्यों की यह सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए कि प्रतिभावान युवाओं को दूसरे राज्यों में पलायन से रोकने के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर और रास्ते खोजने चाहिए, प्रवासन से न केवल धन की निकासी शुरू होती है बल्कि यह परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों, मूल स्थान, व्यंजनों, परंपराओं और संस्कृति से एक भावनात्मक प्रस्थान को भी जन्म देता है। इस कारण वश आने वाली पीढ़ी अपने पूर्वजों के साथ सह-संबंध नहीं बना पाएगी और इसलिए यह वंशावली और पैतृक सांस्कृतिक मानदंडों और परंपराओं से संबंध भी तोड़ रही है। यह एक हर्षजनक तथ्य है कि भारत का संविधान भारत के किसी भी हिस्से में काम करने का अधिकार देता है, लेकिन इस महान विशेषता की आड़ में राज्य सरकारें अपने मूल निवासियों को एक सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारियों को नहीं भूल सकती हैं।

— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : [email protected]