राजनीति

आरसेप और भारत

आरसेप ( Regional Comprehensive Economic Partnership ), लगभग एक तिहाई दुनिया, तीन बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और आपसी व्यापारिक साझेदारी।

एक तिहाई दुनिया का व्यापारिक साम्राज्य और भारत का उससे बाहर होना, क्या यह एक सशक्त राष्ट्र के रूप में हमारे लिए सुखद है?
नहीं, मगर वर्तमान परिदृश्य में हमारे लिए इसमें भागीदार होना घाटे का ही सौदा होगा। ऐसा इसलिए क्युंकि हमारा आधारभूत ढांचा आज भी अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत पीछे है। विनिर्माण प्रोद्योगिकी, मानव संसाधन, कौशल्य ये कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां हमारी शुरूआत ही बहुत देर से हुई। वस्तुत: हमें नब्बे के दशक में ही जब हमने वैश्वीकरण को चुना था हमें इन क्षेत्रों में बड़े निवेश करके इन्हें सक्षम बनाना था पर दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ नहीं। हम केवल बाजार बनकर फूलते रहे। और अब हम एक ऐसी स्थिति में हैं कि हम प्रतियोगिता करने से बच रहे हैं। यही कारण है कि हम इस बड़े समझौते से बाहर रह रहे हैं।
निश्चित ही यह तात्कालिक रूप से हमारे हित में है मगर यह आदर्श स्थिति नहीं है। खैर, देर से ही सही , शुरुआत हुई है और आशा और विश्वास है कि मजबूत नेतृत्व, समर्थ उद्यमी और प्रतिभा, ऊर्जा से भरपूर युवाओं के बुते भारत निकट भविष्य में इस कमजोरी को भी दूर कर लेगा। तभी हम सही मायनों में अपनी प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासतों का समुचित लाभ उठा पाएंगे। तब हमें बचने के रास्ते नहीं खोजने होंगे, हम सर उठाकर दुनिया का सामना करेंगे और समृद्धि को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचा सकेंगे। फिर तो दुनिया मुट्ठी में।

— समर नाथ मिश्र