धर्म को मार्गदर्शन ही रहने दो
धार्मिक निष्ठा और धार्मिक कट्टरता
सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि धर्म क्या है?
साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जैसे- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है धारण करने योग्य। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।
मेरे शब्दों में धर्म का अर्थ है पहले खुद तक पहुंचो, फिर किसी अन्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करो। धार्मिक निष्ठा भी हमें इसी ओर इंगित करती है कि निष्ठा रखो अपने धर्म के प्रति। किसी को इससे आहत न करो।
अब सवाल आता है कि धार्मिक कट्टरता क्या है?
तो सीधा सा जवाब है कि जब हम किसी भी धर्म, जाति, वर्ण के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाते हैं और उनका ही कहना मानते हैं, किसी अन्य की टिप्पणी भी सुनने को तैयार नहीं होते। अपने समूह द्वारा बनाए नियमों को ही सर्वोत्तम मानते हैं यही कट्टरता कहलाती है।
किसी भी धर्म के प्रति हमारा समर्थन, उसके प्रति हमारा कर्त्तव्य, उसके प्रति हमारा लगाव हमारा रास्ता भटका देते हैं। हम अनजाने में ही सही पर भटक जरूर जाते हैं।
हमें चाहिए कि हम धर्म के प्रति अपनी निष्ठा जरूर रखें अपने आपके समर्पण द्वारा न कि कट्टरता द्वारा।
धर्म हमें रास्ता दिखाता है न कि भटकाव! अब आपको ही समझना होगा कि आपको कौन सा रास्ता चुनना है भगवान के हृदय तक पहुंचने में?
मौलिक विचार
नूतन गर्ग
दिल्ली