समंदर रोता है
कही प्यासी धरती रोती, कही समंदर रोता है।
कोई बना देवता, कही राह का पत्थर रोता है।
आज भी सूनी राह पे बिछी,माँ की पथराई आँखें ,
आँगन उदास है, बेटे की याद में घर रोता है।
हुई झमाझम बारिश, मौसम खुशनुमा हुआ,
मगर मुफलिसों का टपकता छप्पर रोता है।
कैसी है ये दीवानगी, श़जर श़जर काट डाले,
अनजानी मौत के डर से अब बश़र रोता है।
दिन तो गुजर ही गया, दिखावे के तबस्सुम में,
तँन्हाई के सायें में वो पिछले पहर रोता है।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर”