मुक्तक/दोहा

गंगा स्नान पर सामयिक मुक्तक

करोना के कहर से आज गंगा घाट सन्नाटा।
दिवस कितना हुआ मायूस कुछ मन को नही भाता।
पतित पावन सभी को मोक्ष देने वाली गंगा के,
किनारे कार्तिक पूनम को भी कोई नही जाता।

हुआ ऐलान अबकी बार ना होगा कोई मेला।
दुकानें ओर सर्कस ना लगेगा चाट का ठेला।
नहाना है तो बस दस बीस दूरी अति जरूरी है,
नयन में नीर नीरज के न दिखता भीड़ का रेला।।

— आशुकवि नीरज अवस्थी

आशुकवि नीरज अवस्थी

आशुकवि नीरज अवस्थी प्रधान सम्पादक काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका खमरिया पण्डित लखीमपुर खीरी उ0प्र0 पिन कोड--262722 मो0~9919256950