सुनो मेरे सनम
राज-ए-दिल तुम्हे बताता चला गया
नजदीक मैं तुम्हारे आता चला गया।
भूला ना कभी एक पल के लिए तुम्हे
नित नये सपने मैं सजाता चला गया।
यूँ बंदिशों में रहने की आदत नहीं रही
बन्धनों में तेरे मैं यूँ समाता चला गया।
मंजिल मिलेगी या नही ये पता भी नहीं
कदमों को फिर भी मैं बढ़ाता चला गया
है अजीब हाल दिल का,सुनो मेरे सनम
तुम संग अपनी दुनिया बसाता चला गया।
— आशीष तिवारी निर्मल