गीतिका/ग़ज़ल

सुनो मेरे सनम

राज-ए-दिल तुम्हे बताता चला गया
नजदीक मैं तुम्हारे आता चला गया।
भूला ना कभी एक पल के लिए तुम्हे
नित नये सपने मैं सजाता चला गया।
यूँ बंदिशों में रहने की आदत नहीं रही
बन्धनों में तेरे मैं यूँ समाता चला गया।
मंजिल मिलेगी या नही ये पता भी नहीं
कदमों को फिर भी मैं बढ़ाता चला गया
है अजीब हाल दिल का,सुनो मेरे सनम
तुम संग अपनी दुनिया बसाता चला गया।
— आशीष तिवारी निर्मल 

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616