ग़ज़ल
तुम पास मुझे अपने बुला क्यों नहीं लेते
हे राम मुझे अपना बना क्यों नहीं लेते
अच्छाई से ज्यादा यहाँ निन्दा का चलन है
इस ऐब से तुम मुझको बचा क्यों नहीं लेते
तुमने तो विभीषण को भी सीने से लगाया था
आया हूँ शरण में तो उठा क्यों नहीं लेते
दीनों पे अकारण ही कृपा करते रहे तुम
मैं धुन हूँ तुम्हारी मुझे गा क्यों नहीं लेते
माखन को चुराते हुए द्वापर में दिखे तुम
तुम ‘शान्त’ मुझे मुझसे चुरा क्यों नहीं लेते
— देवकी नन्दन ‘शान्त’