वृक्ष ही तो है सहारा
इन प्यारी सी चिड़ियों का
कर रहा मानव सफाया
इन वृक्ष प्रजातियों का।
आती नहीं दया मानव को
निरीह वृक्षों को काट कर
रहेंगी कहां बेचारी चिड़िया
कहां चहचहायेंगी ये बैठ कर।
आकर पक्षी दूर-दूर से
लेती इन वृक्षों का आश्रय
बसायेंगी कहां ये संसार अपना
लेंगी कहां आश्रय में निराश्रय।
दया आती नहीं वृक्ष काटने वालों को
करके इन वन वृक्षों का सफाया
आती है याद तब इन वृक्षों की
होने लगता भूमि का जब स्वयं सफाया।
हो मनुष्य या पक्षी चाहे कोई जीव
होता है सहारा सभी का यह वृक्ष
अस्तित्व सभी का तभी सुरक्षित
रहेंगे संरक्षित जब ये वन वृक्ष।
वृक्ष जीवन की आस है
शुद्ध हवा इनके ही पास है
करें सभी जन इनकी सुरक्षा
होता इसी से जग का विकास है।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’