मां जैसा कोई और नहीं- संस्मरण
शरद ऋतु की रात में 8:00 बजे का समय रहा होगा। शांत वातावरण में दरवाजे के बाहर टुक-टुक की धीमी सी आवाज आती है। अचानक आवाज आना बंद हो जाती है। उस समय मैं अपनी लॉ की “महिला कानून” की किताब पढ़ रहा था। जब दरवाजा खोलकर देखा तो बाहर एक बुजुर्ग दंपत्ति थे। जिनकी उम्र लगभग अस्सी से पिच्यासी वर्ष रही होगी। मैंने दोनों से राम-राम लेकर नमस्कार किया और मैने पूछा! बाबा जी कहिए। बूढ़े बाबा बोले हम यहां चौकीदार है! और आप कौन हैं? कल तो आप यहां थे नहीं।
मैंने जवाब में अपना नाम अवधेश कुमार और मेरे अलावा चार लोग और हैं। हम पांच लोगों की टीम हैं। जो भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की एक शाखा जो राष्ट्रीय अनुसंधान तपेदिक चेन्नई की एक परियोजना थी। जिसमें हमारे दो परियोजना तकनीकी अधिकारी श्री वीरेंद्र कुमार, श्री मुकेश मिश्रा जी, अभिषेक मिश्रा और अनुगुंज, सम्मिलित थे। इस परियोजना में तपेदिक बीमारी पर सर्वेक्षण किया जा रहा था।
प्रयागराज जिले के मेजा तहसील की ग्राम पंचायत उंचढीह में काम चल रहा था। हम लोग प्रयागराज की अगली ग्राम पंचायत गंगौर की तैयारी हेतु आए हुए थे। रास्ते में आते-आते रात हो चुकी थी। कहीं भी रात गुजारने की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। अगर किसी के पास रहने के लिए मकान था भी तो कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग के नाम लेते ही मना कर देते थे। बड़ी मुश्किल के बाद एक कृष्णा विधि कॉलेज में रहने की व्यवस्था बन गई। लंबी सांस लेते हुए मैंने कहा चलो आधा काम तो खत्म हुआ। शुबह से कुछ ना खाने की वजह से भूख बहुत तेज़ लगी थी। सब लोगो ने जल्दी जल्दी खाना बनाया और खाना खा कर अपने अपने कमरे में सोने चले गए।
बात करते है, कृष्णा विधि कालेज की! बूढ़ी मां जी ने कहा बेटा हमें एक पॉलिथीन हो तो दे दो। मैंने कहा ठीक है माता जी मेरे पास है, मैं अभी आपको देता हूं। मैंने उस बूढ़ी मां को में पॉलीथिन दे दी। माता जी उसको लेकर चली गई। थोड़ी देर बाद दोनों बूढ़े माता जी व बाबा जी आते हैं। हाथ में काले रंग की पॉलीथिन होती है। बूढ़ी मां मेरी तरफ हाथ बढ़ाकर कहती है। ये लो बेटा यह तुम्हारे लिए है। मैंने कहा क्या है इसमें? मां ने उत्तर दिया इसमें तुम्हारे लिए मिठाई है। यह सुनकर मैने बाबा जी की तरफ देखा। तो बाबा जी ने भी मेरी तरफ इशारा किया। कहा खालो!
मैंने अपने मन में सोचा कि बेचारे यह गरीब हैं, पता नहीं कितने दिन बाद मिठाई खरीद कर लाए होंगे। मैंने कहा आप दोनों खा लीजिए। हम तो खाते रहते हैं। उनके बार-बार आग्रह करने पर मैंने मिठाई ले ली। मैं उनके साथ अपने कमरे से बाहर आ गया। तो मैंने देखा कि सर्दी के मौसम में बाहर बिस्तर लगा हुआ था। मैंने कहा कमरे में क्यों नहीं सो रहे हो। तो बाबा बोले इस उम्र में कम दिखाई देता है। जो कि हमारे कमरे में अंधेरा है। मैने उनको मोमबत्ती दी। आप अंदर कमरे में सोना, बाहर बहुत सर्दी है। मेरे कहने पर वे कमरे में सोने चल दिए।
मैंने उनके पास दो घंटे बैठ कर अपना समय बिताया। मैंने उनसे जानकारी ली तो बताया कि बाबा जी का नाम राम सहारे व माता जी का नाम उर्मिला देवी था। उनका घर कॉलेज से पांच किलो मीटर की दूरी पर था। घर में एक बेटा और बेटी है। दोनों की शादी हो चुकी हैं। बेटा कम पढ़ा लिखा होने के कारण उसका व्यवसाय कुछ खास नहीं चल रहा था। इसलिए हम दोनों को चौकीदार की नौकरी करनी पड़ रही हैं। पूरे महीने में दोनों को तीन हज़ार रुपए तनख्वाह मिल जाती हैं। परिवार के भरण-पोषण के लिए हमारी तनख्वाह सहयोग में अा जाती है। मैंने कहा मां जी आप मिठाई को घर क्यों नहीं ले गए। घर पर आपके बहू बेटा खा लेते। मां जी ने कहा आज सुबह ही बाबा के मिलने वाले के यहां से न्यौता आया था। तो हम दोनों शादी में सम्मिलित हुए और खाना खाया। शादी लड़के की थी जिसमें लड़के के पिता जी ने हमें मिठाई यह कह कर दी कि आप अपने बहू बेटा के लिए ले जाओ।
लेकिन घर दूर होने की वजह से हम नहीं पहुंच सके। कल तक मिठाई खराब हो जाएगी हमने सोचा क्यों ना हम आपको खिला देते हैं। तुम भी तो हमारे बेटे जैसे ही हो इसलिए मैंने आपको मिठाई दी थी। आप यह मिठाई खाओगे तो हमारे हृदय में अपार खुशी होगी।
मैंने कहा भले ही आप धन से गरीब है। लेकिन दिल से आप बहुत बड़े राजा हैं।
मां किसी की भी हो, चाहे मां गाय के बछड़े की हो या हिरण के बच्चे की, मां किसी को कभी नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। आखिरकार मां अपने जीवन में अपनी संतान के लिए जीवन भर नि:स्वार्थ कार्य करती हैं। मां महान होती है, मां जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता, मां सब देवों की भगवान है।
आखिर मां जैसा कोई और नहीं…………….
— अवधेश कुमार निषाद मझवार