कविता

मैं सब सीखूँगा  

मैं सब सीखूँगा

मैं चिड़ियों के गीत सुनूँगा
मैं चिड़ियों के गुण गुनूँगा
चहक-चहक कर उनका उड़ना
भिन्न-भिन्न ध्वनि में उनका कहना
मैं सब सीखूँगा …

सवेरे-सवेरे पूरब की लाली देखूँगा
बाग-बगीचों में तितलियों के पर गिनूँगा
पत्तों पर बिखरीं चाँदी सी ओस की बूँदें
जाग उठीं कोमल कलियाँ जो थी आँखें मूँदें
मैं सब सीखूँगा
मैं सब देखूँगा …

मोर-मोरनी का मनोरम नृत्य
नीड़ निर्माण बया का अदभुत कृत्य
भँवरों का मधुर गान
पपीहे की अमर तान
मैं सब देखूँगा …

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111