आदर्श
कर्मों का खेल है सारा, जो लिखा होता है वही होता है। शर्मा जी सभी से यही तो कह रहे थे। बड़े आदर्शवादी बनते थे शर्मा जी।सारे आदर्श धरे के धरे रह गए थे। कितने अरमानों से पढ़ाया-लिखाया था बेटे को। पर आज उन्हें सब कुछ व्यर्थ लग रहा था।काम ही कुछ ऐसा हुआ था। बेटे ने गैर-बिरादरी में विवाह जो कर लिया था।उनके आदर्शों पर बड़ा धक्का लगा था।सारी जिंदगी आदर्शों पर ही गुजार रहे थे। अपने आदर्शों के चक्कर में ही पड़ कर उन्होंने अपनी बेटी का विवाह बिना उसकी मर्जी के कर दिया था। कितना हंगामा हुआ था घर में। सारा परिवार उनके फैसले के खिलाफ था। होता भी क्यों नहीं उनकी लाडली दिल दे बैठी थी?पर पिता के आदर्शो के कारण ही वह हार मान गई थी। वैसे भी बेटियाँ झुक जाती है अपने परिवार के सामने।या यूँ कहे टूट जाती हैं,उनकी शक्ति के आगे।
यही हुआ था काव्या के साथ भी। शर्मा जी के दो ही बच्चे थे। बड़ी बेटी काव्या और बेटा कानू।काव्या का स्वभाव बचपन से ही बड़ा चुलबुला था।वह जिंदगी को मस्ती से जीना चाहती थी।उसे रोक-टोक पसंद नहीं थी। वह बिंदास जीवन-शैली चाहती थी। उसे पिता के तकियानूसी विचारों से नफरत थीं।उसे पिता के आदर्श भी किसी बोझ से कम नहीं लगते थे। पर मजबूर थी, जहां उसे बिंदास अंदाज पसंद था। वही पिता जी की सुई अपने आदर्शों पर अटकी रहती थी।माँ हमेशा इस टकराव को रोकने पर ही लगी रहती थी। वह पति को समझाने पर लगी रहती थी कि आजकल के बच्चों पर आदर्श थोपे नहीं जा सकते।क्यों हर समय अपने आदर्शो की गठरी खोल कर बैठ जाते हो उनके सामने। वक्त के साथ बदलाव जरूरी है।तुम्हें भी बदलना चाहिए।
पति पर उसकी बातों का कोई भी असर होता दिखाई नहीं देता था। वह हार मान जाती थी। बच्चे उसके बिल्कुल विपरीत विचार रखते थे।वे उल्टा माँ को ही समझाने लग जाते थे।
माँ आप पिता जी को आदर्श छोड़ देने को क्यों नहीं कह देती? अब समाज बदल रहा है। साथ ही आदर्श भी बदल रहे हैं। समय के साथ बदलना ही जीवन है।इसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए। वरना हम इस भौतिकवादी दौड़ में हमेशा के लिए पिछड़ जाएंगे। हम आधुनिक परिवेश में जीवन- यापन कर रहे हैं, तो हमें भी आधुनिक होना चाहिए। चाहे इसके लिए इन तकियानूसी आदर्शो का त्याग ही क्यों ना करना पड़े?
माँ तुम टी वी,अखबारों को खूब देखती हो। फिर भी तुम्हें इस बदलाव की आहट महसूस नहीं होती।मुझेंसब पता है आधुनिकता के बारे में।पर हमें अपने आदर्शों को भी मानना चाहिए।इस आधुनिकता के दौर में दोनों ने सामजस्य बिठाना आना चाहिए।अगर ऐसा नहीं करोगे तो माँ की बात बीच में ही काट दी बेटे ने।छोड़ो माँ तुम भी पिता जी का ही पक्ष ले रही हो।और वह चुप हो गई।काव्या ने तो मम्मी- पापा दोनों को समझाने का बहुत प्रयास किया था।
उसने तो यहां तक कह दिया था। पापा आपको समय के साथ बदलना चाहिए।आजकल जात-पात कौन देखता है? जरूरी है इंसान की खुशी। पिता ने उल्टे उसे ही समझा दिया था।बेटी तुम इन गैर-बिरादरी वालों को नहीं जानती। गैर- बिरादरी में शादी करके सिर्फ पछतावा ही मिलता है।मैं ऐसी बहुत सी लड़कियों को जानता हूँ। जिन्होंने गैर- बिरादरी में घर बसा कर अपना जीवन बर्बाद कर लिया हैं।दूसरी बिरादरी में तुम्हें सम्मान प्राप्त नहीं होगा। अगर तुमने दूसरी बिरादरी के घर बसा लिया, तो मेरा मरा हुआ मुँह देखोगी। पिता जी कुछ भी समझने को तैयार नहीं थे। उन्होंने अपना आखिरी अस्त्र भी छोड़ दिया था। मेरा मरा मुँह देखोगी।माँ फूट-फूट कर रोने लगी थी।वह चुप ही नहीं हो रही थी। बेटी जब तुम्हारे पापा ही नहीं रहेंगे तो मैं भी जीके क्या करूंगी? पिता जी के आदर्शों के आगे काव्या ने हथियार डाल दिए थे। उसने हार स्वीकार कर ली थी।
पिता जी ने अपनी मन मानी कर ली थी।अपनी पसंद के लड़के से मेरी शादी कर दी थी।मुझें शादी की कोई खास खुशी नहीं थी।उस दिन मैंने खुद से समझौता कर लिया था। और आज तक उस समझौते को ही निभा रही हूँ।हर रोज खुश होने का अभिनय कर रही हूँ।पर अंदर ही अंदर तिल- तिल कर मर रही हूँ।
कानू से पिता जी को यह आशा नहीं थी।सीधा- साधा दिखने वाला कानू इतना तेज निकलेगा। विदेश पढ़ने के लिए भेजा था। पढ़- लिख कर अच्छी नौकरी करेगा। हम बड़े धूमधाम से उसकी शादी करेंगे। बिरादरी में चारों तरफ हमारा सम्मान बढ़ेगा। सभी शर्मा जी को बधाई देंगे।शर्मा जी के आदर्शों की जीत होगी। सभी सगे- संबंधी उन्हीं से सलाह करेंगे। उनकी इज्जत आसमान छू लेगी।लोग कहेंगे, शर्मा जी के आदर्शो ने तो कमाल कर दिया। दोनों बच्चे चमके हैं,उनकी छोटी सी नौकरी में।उन्होंने सहज ही अपने आदर्शों पर चलते हुए हुए अपने बच्चों को किस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है।
पर अब इस घटना ने उनके आदर्शों की धज्जियाँ उड़ कर रख दी थी।कानू अपने पिता को अच्छी तरह जानता था कि वह अपने आदर्श की गठरी खोल कर बैठ जाएंगे। वह किसी भी कीमत पर इस विवाह के लिए तैयार नहीं होंगे।और माँ को सिर्फ पिता जी की हाँ में हाँ मिलाना आता है। ऐसा नहीं है कि वह कुछ समझती नहीं है,इस बदलते समाज के बारे में। पर पिता जी के अड़ियल व्यवहार के आगे तो वह हमेशा नतमस्तक हो जाती है।और हार मान जाती है।काव्या की शादी से पहले भी माँ ने पिता जी को खूब समझाया था कि जमाना बदल रहा है। उन्हें भी बदलना चाहिए।पर घर में तूफान आ गया था।
आज सुबह कानू ने टेलीफोन पर सूचना दी थी।माँ मैं माधवी को लेकर आ रहा हूँ। फ्लाइट आने में कुछ घंटों का ही समय शेष बचा था।पर शर्मा जी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। वह बार-बार यही कह रहे थे,मेरे जीते जी वह गैर- बिरादरी की लड़की घर में प्रवेश नहीं कर सकती। उसके लिए इस घर में कोई जगह नहीं है।काव्या भी पिता जी को समझा-समझा कर थक गई थी। पापा इन बातों में कुछ नहीं रखा है।आपको अपनी सोच बदलनी चाहिए।क्यों झूठे आदर्शों के गट्ठर खोलकर बैठ जाते हो?हम आपके बच्चे हैं, क्या आप अपने बच्चों के लिए यह आदर्श नहीं छोड़ सकते?शर्मा जी ने वही अपना पुराना अलाप अल्पना शुरू कर दिया था। तुम ही बताओ काव्या क्या मैंने तुम्हारे लिए बढ़िया घर-बार नहीं चुना?
तुम्हारा रुतबा है,तुम्हारा पति पूरे शहर का मालिक है।इज्जत मान-सम्मान, पैसा सब कुछ है तुम्हारे पास।अब काव्या चुप नहीं रही सकी पर पापा प्यार नहीं है मेरे पास।मुझें तो पैसा नहीं चाहिए था।मैं आजादी चाहती थी। और आपने मेरी आजादी ही छीन ली।आप किसी का भला नहीं चाहते। आप सिर्फ अपने आदर्शों को पूरा करना चाहते हो,ताकि समाज में आपकी जीत हो सके। अब चुप भी करो,काव्या।माँ ने बीच में टोकते हुए कहा, वह तुम्हारे पापा हैं।वह तुम्हारा भला ही चाहेंगे।
काव्या:- भला, यह किसी का भला नहीं चाहते।यह सिर्फ अपने आदर्शों को थोपना चाहते हैं।मुझ पर भी यही किया था इन्होंने। आपको भी नहीं छोड़ा अपने झूठे आदर्शो के लिए,आपके सपनों को बलि पर चढ़ा दिया था इन्होंने। आप नौकरी ही तो करना चाहती थी कॉलेज में।पर इन्होंने आपको यह कह कर रोक दिया था।क्या कहेंगे लोग शर्मा जी की धर्म पत्नी कॉलेज में नौकरी करती है? वह भी लड़के के कॉलेज में।माँ तुम नहीं समझी थी इनकी घिनौनी सोच को। इन्हें तुम पर भरोसा था।नहीं,चुप कर काव्या।अब एक भी शब्द मुँह से नहीं निकालना। ठीक है, माँ मेरे चुप हो जाने से सच्चाई नहीं छुप जाएगी। और आज कानू के फैसले ने तो इनके तकियानूसी आदर्शों की दीवार तोड़ कर रख दी। तभी तो आज उन्होंने फिर से घर को सिर पर उठा लिया है। ताकि इस बार भी इनका ड्रामा कामयाब हो जाए। यही है इनके आदर्श कि कोई इनकी इजाजत बिना कुछ ना करें।जो इनको सही लगे वही सही ठहराया जाए।
यह दिन को रात कहे तो रात, अब चुप हो जाओ काव्या
मेरी बेटी।माँ तुम मुझसे सहमत नहीं होना चाहती।पर इन्होंने दो जिंदगी खराब कर दी है। शर्मा जी को इस तरह के व्यवहार की कोई उम्मीद नहीं थी।काव्या आज भरी पड़ी थी। पर वह अब चुप हो गई थी।उसकी आँखो नम थी। शर्मा जी की आदर्श पत्नी भी गर्दन झुकाए बैठी थी।
डोर बेल बजी उठी।शर्मा जी ने दरवाजा खोला।सामने एक सज्जी- धज्जी लड़की खड़ी थी।उसने शर्मा जी के पैर छू लिए। आपको कौन चाहिए?मुझे मेरे प्यारे आदर्शवादी पापा चाहिए।तुम कौन हो?मैं आपकी माधवी, आपकी पुत्रवधू। क्या आप ही मेरे पापा हैं? शर्मा जी उसकी चतुराई पर हैरान थे।पीछे- पीछे कानू भी आ गया। वह बिना कुछ बोले ही अंदर आकर माँ के पास बैठ गया। माधवी ने शर्मा जी का हाथ थाम लिया।और उनके पास बैठ गई।पापा मुझें कानू ने आपके बारे में सब कुछ बता दिया था कि आप कितने आदर्शवादी हो।मैं तो आपकी फैन हो गई हूँ।
शर्मा जी:-पर बेटी तुम तो गैर- बिरादरी की हो। तो क्या हुआ पापा, क्या गैर -बिरादरी के लोगों को आपके आदर्शों को मानने का हक नहीं है? आपके विचार आपके नहीं, हम सभी के हैं।क्या काव्या दीदी, मैं सही कह रही हूँ?ना चाहते हुए भी काव्या ने हाँ कर दी।पापा,इंसान अच्छा होना चाहिए, बिरादरी में क्या रखा है? सारे घर का माहौल धीरे-धीरे सहज हो रहा था।माधवी बोलती जा रही थीं।और शर्मा जी चुपचाप सुनते जा रहे थे।पापा अगर कानू ने मुझें पहले ही बता दिया होता कि आपको हमारा रिश्ता पसंद नहीं है तो मैं कभी भी उससे शादी ना करती। हमें कोई हक नहीं है कि हम अपनों से बड़ों को दुःख पहुँचाए।मुझें क्षमा कर दीजिए पापा। मेरे कारण आपके आदर्शो को ठेस पहुंची हैं।
शर्मा जी अपनी प्यारी बहू के व्यवहार से गदगद हो गए थे। उन्होंने स्वयं स्वीकार कर लिया था कि बेटी आज मुझें सचमुच अहसास हो गया है। सबसे बड़ा आदर्श तो अपनों का प्यार और उनकी खुशी हैं।अगर अपना घर-परिवार खुश नहीं तो ऐसे आदर्शो को तिलांजलि दे देनी चाहिए।पापा के ये शब्द सुनकर काव्या उनके गले लग गई।
माधवी,चुपचाप सब देख रही थी।उसने हँसते हुए कानू की तरफ आँख मर दी।कानू भी माधवी की समझदारी पर कुर्बान था। शर्मा जी अपनी पत्नी से बोले देखा जीत हुई ना मेरे आदर्शो की।सभी उन्हें देख कर हँस पड़े। पापा,आप भी कमाल हो।माधवी बोल पड़ी।