प्रदेश की राजनीति में आआपा का प्रवेश कोई चुनौती नहीं
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश में आगामी 2022 में विधानसभा चुनाव लडने का ऐलान कर दिया है। यह कोई नयी और हैरानी करने वाली बात नहीं है कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की घोषणा से प्रदेश की राजनीति में कोई महाभूकम्प या फिर महापरिवर्तन आ जायेगा। हालांकि वे उप्र के लोगों से अपील कर रहे हैं परिवर्तन के लिए। यह तो 2014 में उसी समय तय हो गया था जब अरविंद केजरीवाल वाराणसी में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी जी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे थे और तब वाराणसी की जनता ने अरविंद केजरीवाल को उनकी राजनैतिक हैसियत दिखा दी थी। केजरीवाल अभी तक दिल्ली की समस्याओं का हल तो खोज नहीं पाये हैं और दिल्ली से ही अन्य राज्यों की राजनीति में अपने दल के भविष्य की जमीन को तलाशने का अभियान चलाते रहते हैं। वे पंजाब, हरियाणा, गोवा और उत्तराखंड जैसे प्रांतों में भी अपनी उपस्थिति को दर्ज करवाने का प्रयास कर रहे हैैं, लेकिन अभी तक उन्हें दिल्ली से बाहर कहीं सफलता नहीं मिली है और मिलती हुई भी नहीं दिखायी प़ड़ रही है। अब आआपा की नजर उप्र में गढ़ गयी है।
आम आदमी पार्टी ने अपने नेता व राज्यसभा सांसद संजय सिंह को उप्र की कमान सौंप दी है। अयोध्या में भव्य भूमि पूजन समारोह के बाद संजय सिंह ने जिस प्रकार से एक के बाद एक जातिवाद के आधार पर भूमि पूजन समारोह की आलोचना की व समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद व बीजेपी के अन्य बुजुर्ग नेताओं को आमंत्रित न करने की कटु आलोचना की तथा दलितों व पिछडे समाज के लोगों को भड़काने का अथक प्रयास किया था ये सभी लोग उसी समय बेनकाब हो गये थे कि ये कितने गहरे पानी पैठ हैं और इनकी असल मंशा क्या है? ये लोग इस बात से आश्चर्यचकित थे कि भव्य भूमि पूजन समारोह के बाद उप्र में दंगे नहीं हुए। आम आदमी पार्टी बहुत ही दोहरे चरित्र व मानसिक विकृति की राजनीति करने वाली पार्टी है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने पैर जमाने के लिए अरविंद केजरीवाल व उनके शिष्यों को अभी सौ बार जन्म लेने होंगे। आआपा नेता संजय सिंह उप्र में लगातार जातिवाद का जहरीला बीज बोकर अपनी राजनैतिक जमीन तैयार करने में लगे हुए है। संजय सिंह ने उप्र के हित में अभी तक कोई भी ऐसा बयान नहीं दिया है कि यह पार्टी प्रदेश की जनता के बीच अपनी पैठ को मजबूती से बना सके।
यह बात अलग है कि आआपा नेता संजय सिंह ने हाल ही में प्रदेश में पंचायत चुनाव लड़ने का ऐलान किया और फिर उसके बाद अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया। आआपा की प्रदेश की राजनीति में प्रवेश को नजरअंदाज तो नहीं किया जा सकता लेकिन यह दल बहुत सारी सीटोें पर कांग्रेस व विपक्ष का चुनावों में उनका गणित जरूर गड़बड़ा सकता है। आआपा की प्रदेश में मौजूदगी से भारतीय जनता पार्टी को कोई विशेष नुकसान नहीं होने जा रहा अपितु इससे सर्वाधिक नुकसान कांग्रेस व अन्य छोटे दलों को ही होने जा रहा हैै।
यही कारण है कि प्रदेश के भाजपा नेताओं ने आआपा नेताओं पर करारा प्रहार करते हुए कहा है कि दिल्ली की आबादी केवल दो करोड़ है और उप्र की 24 करोड़। उप्र के लिये आआपा नेता मुंगेरीलाल के हसीन सपने ही देख रहे हैं। केजरीवाल की घोषणा के बाद ट्विटर इंडिया पर योगी समर्थक भी तुरंत सक्रिय हो गये और ट्विटर वार छिड़ गया जिसमें योगी जी का आगे निकलना स्वाभाविक ही था। सोशल मीडिया पर लगातार आम आदमी पार्टी व केजरीवाल पर हमले किये जा रहे हैैं और तंज भी कसे जा रहे हैं। सोशल मीडिया में लोग यूपी और केजरीवाल के शासन का तुलनात्मक विश्लेषण कर रहे हैं। लोग कह रहे हैें कि सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य होने के बावजूद कोरोना संकट के काल में योगी जी ने जिस प्रकार से प्रदेश को संभाला उसकी प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य ससंगठन ने भी की थी। दिल्ली की दो करोड़ की आबादी में अभी तक केवल 72 लाख कोविड टेस्ट हुए और मौतों का आंकड़ा भी सबसे अधिक रहा है। जबकि उप्र 24 करोड़ की आबादी वाला राज्य और कोविड परीक्षण दो करोड़ से भी आगे निकल रहे हैं। बेरोजगारी का रोना रोने वाले आम आदमी पार्टी के नेता दिल्ली के युवाओं को ही रोजगार नहीं दे पा रहे हैं और वहां पर 45 प्रतिशत युवा बेरोजगार होकर दूसरे राज्यों की ओर तेजी से पलायन कर रहे हैं।
आज की तारीख में दिल्ली की हालत बहुत दयनीय हो चुकी है और किसान आंदोलन में अपनी फर्जी सहानुभूति दिखाकर उप्र की जनता को बेवकूफ बनाने के लिए चल पड़े हैं। योगी जी के नेतृत्व में उप्र आत्मनिर्भर व उत्तम प्रदेश बनने की ओर अग्रसर है जबकि दिल्ली में टुकड़े-टुकड़े गैंग की दहशत है। अरविंद केजरीवाल को यह अच्छी तरह से पता होना चाहिए कि हर जगह दिल्ली की राजनीति के टोटके नहीं चल सकते। यह उप्र है यहां पर उनसे बहुत बड़े-बड़े महारथी उपस्थित हैं। वे केवल विपक्ष का नुकसान करेेंगे और भाजपा को लाभ ही होगा। संजय सिंह प्रदेश में जातिवाद का जहरीला जहर बो रहे हैं। उन्होंने जातिवाद पर आधारित सर्वे तक करा डाला, उस प्रकरण में उन पर प्राथमिकी भी दर्ज हो चुकी है। लगभग 13 मामलों में उन पर एफआईआर हो चुकी है, लेकिन यह लोकतंत्र है।
संजय सिंह व उनके साथियों ने गाजियाबाद जिले में 256 लोगों का फर्जी धर्म परिवर्तन करवाकर गहरी साजिश रची थी, लेकिन वह बेनकाब हो गयी। गाजियाबाद में आम आदमी पार्टी ने पैसा देकर साजिश रची थी जिसे उन्हीं के दल के कार्यकर्ता ने बेनकाब कर दिया था अभी उस मामले की जांच चल रही है। आआपा ने फर्जी धर्म परिवर्तन की घटना के बाद लखनऊ में हिंदू धर्म व भाजपा सरकार को बदनाम करने के लिए विकृत नारेबाजी भी करवायी थी। आम आदमी पार्टी के लोग नकारात्मक राजनीति कर रहे हैं। केजरीवाल दिल्ली के दंगाइयों को सिर आंखों पर बिठाकर कार्यवाही नहीं करने दे रहे जबकि उप्र में अपराधी तत्व थर-थर कांप रहे हैं। दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक किस तरह से काम कर रहे हैं वह पूरा देश व दिल्ली की जनता अच्छी तरह से समझती व देख रही है।
कोरोना काल में यूपी में सभी राज्यों के मजदूरों का स्वागत किया गया जबकि दिल्ली की सरकार ने प्रदेश के पूर्वांचल के मजदूरों को सड़क पर फेंक दिया था और उन्हें दर-दर की ठोंकरे खाने के लिये मजबूर कर दिया था। वे बेचारे गरीब मजदूर पैदल ही घर के लिए निकल पड़े थे जबकि उन्हेें उप्र की सरकार व जनता तथा स्वयंसेवी संगठनों ने ही उनकी भरपूर मदद करी थी, उन्हें दवा, भोजन तक उपलब्ध करवाकर घर पहंुचने तक का भोजन और धन देकर घर पहुंचाया था।
आआपा किस आधार पर उप्र में चुनाव लड़ने आ रहे है केजरीवाल जी। आआपा की नियत ही ठीक नहीं है। वे जातिवाद कर रहे हैं, मुस्लिम तुष्टिकरण कर रहे है और अयोध्या में जब भव्य राम मंदिर बनने जा रहा है उस समय भी आआपा के लोग विवादित बयानबाजी कर हिंदू जनमानस का अपमान कर रहे हैं। यही कारण है कि अभी आआपा को उप्र में राजनीति मे पैर जमाने के लिए सौ बार जनम लेने पडें़ेगे। आआपा ने लाॅकडाउन के दौरान यूपी के सारे मजदूरों को भगा दिया वह उन्हें अच्छी तरह याद है। यह दिल्ली नहीं है केजरीवाल जी। यहां पर आआपा का पाखंड और झूठ नहीं चलेगा। केजरीवाल जी अपनी दुकान चमकाने के लिए नकली फर्जी किसानों के फर्जी सेवादार बन जाते हैं। फर्जी ढंग से अपने आआपा को नजरबंद करके अपने आआपा को किसान हितैषी बताने का प्रयास करते हैं। आआपा जैसा फर्जी नेता न हुआ है और न ही होगा। उप्र की राजनीति में आआपा की दाल नहीं गलने वाली।
— मृत्युंजय दीक्षित