बिहार में शराबबंदी बच्चों की बचपन छीनने लगी है
बिहार सरकार और उसके मुखिया भले ही शराबबंदी को न्यायोचित ठहराने के लिए शराबबंदी के पक्ष में अनेकानेक प्रमाण प्रस्तुत कर लें और बेशक वे सही भी है तो भी क्या सरकार इस बात से इंकार कर सकती है कि आज बिहार में लगभग हर गांव के कुछ किशोर वय उम्र के बच्चे अवैध शराब के होम डिलीवरी में शामिल होकर शराबबंदी कानून और सरकार एवं सरकार के मुखिया के शराबबंदी से होने वाले तमाम फायदे के दवा की हवा नहीं निकाल रहे हैं।
बिहार में 1 अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागू है। इससे राज्य सरकार को लगभग 6 हजार करोड़ रु. का नुकसान हो रहा है। लेकिन समाजिक प्रभाव के लिहाज से ये कदम सही और प्रशंसनीय है। 2016 तक बिहार के लोग हर वर्ष 1410 लाख लीटर शराब पी जाते थे।जिनमें 990.36 लाख लीटर देशी एवं 420 लाख लीटर विदेशी शराब शामिल है।उस वक्त पूरे बिहार में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शराब की लगभग 6 हजार दुकानें थीं अवैध दुकान हर मोड़ और नुक्कड़ पर मिल जाते थे। 2005-06 में सरकार को शराब से 295 करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी, जो 2014 में बढ़कर 3 हजार करोड़ से ज्यादा हो गई थी।
शराब बंदी की पहल 9 जुलाई 2015 को उस वक्त हुई जब मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम में किसी महिला ने कहा कि मुख्यमंत्री जी, शराब बंद करवाइये घर बर्बाद हो रहा है। मुख्यमंत्री ने फौरन ऐलान कर दिया कि अगली बार सरकार में आए, तो शराब बंद कर दूंगा। जिसे लागू करके उन्होंने अपना वादा निभाया और आज भी शराबबंदी जारी है।
वैसे बिहार में शराबबंदी का कोई यह पहला मामला नहीं है सन 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने भी रोक लगाई थी।लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही फैसला वापस लेना पड़ा था। क्योंकि सरकारों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया शराब ही होती है।यही वजह है कि आंध्रप्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडु में बैन तो लगा, लेकिन रेवेन्यू लॉस को देखते हुए फैसले वापस भी ले लिए गए। हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री का दावा है कि बिहार के भविष्य और महिलाओं की चिंता को देखते हुए ये फैसला सख्ती से लागू होगा।जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई के लिए अन्य विकल्प तलाशे जाएंगे।
गुजरात, नागालैंड, लक्षद्वीप तथा मणिपुर के कुछ हिस्सों में भी शराबबंदी लागू है। केरल में 30 मई 2014 के बाद से शराब दुकानों को लाइसेंस मिलना बंद किया गया था।आंध्रप्रदेश, हरियाणा, मिजोरम में शराबबंदी हुई थी।पर कारगर न हो सकी थी।
शराबबंदी के सरकार के निर्णय की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम होगी।शुरुआती दौर में प्रशासनिक सख्ती और जनता से मिले अनअपेक्षित जन समर्थन के कारण शराबबंदी बिल्कुल सफल रहा था।जब तक मुख्यमंत्री के स्तर पर शराबबंदी की मॉनिटरिंग किया जाता रहा तब तक इसका जमीनी प्रभाव दिखा।शुरुआती दौर में शराबियों की हलकें सूखने लगी थी।अपने हलक की प्यास बुझाने के लिए उन्हें कई प्रकार के दुश्वारियों का सामना करना पड़ता था।लेकिन हलक की प्यास बुझाने के लिए उन्हें बिहार में कोई कोना नहीं मिलता था।उसके लिए उन्हें पड़ोसी राज्यों का सहारा लेना पड़ता था।लेकिन उसके बाद भी उन्हें पुलिस के डंडे का डर सताते रहता था क्योंकि किसी भी वक्त कहीं भी पकड़े जाने का डर भूत की तरह उनका पीछा करता था।
लेकिन जैसे ही कुछ महीने बीते यह कानून कुछ गलत मानसिकता वाले लोगों के लिए दुधारू गाय साबित होने लगा। वैसे लोग जो पहले से शराब कारोबार में लिप्त थे अब शराब की कालाबाजारी करने लगे।वे अपने धंधे को अमली जामा पहनाने के लिए बच्चों का सहारा ले रहे हैं।जिसमें पुलिस प्रशासन से लेकर सत्ता में बैठे पूछ रसूखदार लोगों के शामिल होने की तथाकथित दावे बिहार के हर लोगों के जुबान से सुनी जा सकती है।
शराबबंदी के नाम पर लोगों के उत्पीड़न की शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं।बीते चार साल में दो लाख लोगों को शराब के मामले में जेल में डालने के बावजूद सजा केवल 400 लोगों को ही हो पाई है।यह भी चिंता का विषय है इसका निराकरण होना चाहिए की शराब बंदी कानून की आड़ में सिर्फ गरीब लोगों को ही सजा हो और रसूखदार लोग कानून की खामियों को गिनाते हुए बरी होते रहें।
बिहार विधानसभा चुनाव के समय कैमरा के सामने अनेकानेक लोगों को इस बारे में बोलते खुलेआम सुना और देखा जा रहा था।अब तो शराबियों को शराब खोजना नहीं पड़ता शराब उन्हें खोज कर घर तक पहुंच जाता है और पहुंचाने वाले कोई पुराना शराबी नहीं बल्कि वैसे लोग हैं जिन पर शक करना भी गुनाह लगता है।लेकिन वास्तविकता को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता तो आज किशोर में उम्र के बच्चे शराब माफियाओं के आसान शिकार हो गए हैं।वे उन्हें पैसों के लालच देकर अपने चंगुल में फंसाते हैं और फिर उनसे शराब की होम डिलीवरी का धंधा करवाने लगते हैं।जिससे आज उनका बचपना मरने लगा है।बच्चों में लगने वाली इस लत के कारण कई प्रकार के बाल अपराधों को जन्म दे रहा है। जिस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है।शराब माफियाओं पर नकेल कसने के लिए सर्वप्रथम प्रशासन में आए सुस्ती को खत्म करना होगा तत्पश्चात शराब माफियाओं को संरक्षण देने वाले सफेदपोशों के गिरेबान पकड़ना होगा।तभी बच्चों के बचपना बचाई जा सकती है और शराबबंदी को सफलता के मुकाम तक ले जाया जा सकता है। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब हरगांव नहीं हर घर में कोई न कोई बच्चा जाने अनजाने इसके गिरफ्त में आ जाएगा और फिर इस भयावह बीमारी से लड़ने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
वैसे शराबबंदी का आज भी कई स्तर पर स्पष्ट लाभ दिख रहा है मसलन महिला उत्पीड़न सड़क दुर्घटना में आई कमी इत्यादि।शराबबंदी को खत्म करने की कतई जरूरत नहीं बल्कि इसे सही तरीके से लागू करने की आवश्यकता है। इसके लिए सामाजिक जागरूकता के साथ-साथ राजनीतिक प्रतिबद्धता और प्रशासनिक सख्ती भी आवश्यक है।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम