महिला सशक्तिकरण में महिलाओं की संवेदनशीलता
सशक्तिकरण : सशक्तिकरण अर्थात स्वं की शक्ति एवम् स्वं के निर्णय का अनुसरण करना या यूं कहे कि स्वं में यह योग्यता आना कि वह अपनी ज़िंदगी से जुड़े सभी निर्णय खुद ले सके।
महिला सशक्तिकरण : जैसा कि आप और हम सभी जानते है कि आज 21वी सदी में भी कई प्रकार की कुरीतियों अंधविश्वास एवं समाज के बनाए गए नियम के कारण महिलाओं को और उनकी आज़ादी ,सोच,कार्य आदि को बंधन में रखा गया गया है । हालाकि कई देशों में महिलाओं को कई अधिकार दिए गए है तो वहीं कई देशों में आज भी महिलाओं को पुरुषों से अलग आंका गया है, ऐसे में कई महिलाएं जो कि अनेका अनेक प्रतिभाओं के धनी होने के बावजूद अपने सारे अरमान इस भ्रष्ट समाज , अंधविश्वास, कुरीतियों के कारण त्यागना पड़ता है ।
ऐसे में एक वाक्य का आना जरूरी है, “महिला सशक्तिकरण” जिसमे महिलाएं परिवार , समाज, एवम् कुरीतियों को त्याग कर उनके सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर अपने स्वं के निर्णयों को आधार बनाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करे एवम् अपने निर्णयों की निर्माता खुद बने और इस पुरुष प्रधान दुनिया को दिखाए कि एक महिला भी पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है ।
सशक्तिकरण पर महिलाओं की संवेदनशीलता -: संवेदनशीलता अर्थात् भावुक या भाव या शीघ्र प्रभावित होना । ऐसे में हम देखते है की महिलाओ में अधिकतर जल्द भावुक ,बातो मे आना, कोमल ह्रदय के साथ शीघ्र प्रभावित होने का गुण पाया जाता है जो निरंतर उनके है खिलाफ हथियार बनता जा रहा है , इस संसार में लैंगिक आधार पर भेदभाव , सांस्कृतिक , आर्थिक, सामाजिक, एवम् शिक्षा आधार पर महिलाओ और पुरुष में अंतर लाया या बनाया जाता आया है ।जहां कई प्रकार की सामाजिक संस्था , सरकार , संविधान विधा महिलाओं के लिए कदम उठाते नजर आते है वहीं महिलाएं खुद को कमजोर , असाहये समझ कर भावनाओं में बह जाती है और जैसा समाज , पुरुष , एवम् खुद अन्य महिलाएं भी उनको बार बार अपने नियम कायदे , कुरीतियां रूढ़िवादी, बाते बता कर उनका दिमाग स्थिर कर देते है ।
जहां देश कि कई महिलाएं देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होती है वहीं देश के कोने कोने में महिलाएं घरेलू हिंसा , प्रताड़ना , यौनशोषण , आदि का दंश झेल रही होती है ऐसे में वह समाज के प्रति संवेदना में बहती चली जाती है और दिमागी रूप से लाचार होती जाती है ।
ऐसे में महिलाएं अपनी पहचान अपनी प्रतिभा को भूल कर नरकी जिंदगी जीने को मजबूर होती है जिसका कारण कहीं ना कहीं शिक्षा का अभाव एवम् खुद महिलाएं भी जिम्मेदार है।
ऐसे में महिलाओं को शिक्षित होकर समाज , पुरुष एवं अन्य रूढ़िवादी महिलाओ के खिलाफ अपनी बुलंद आवाज के साथ अपनी आज़ादी की बात खुले तौर पर करने की जरूरत है , ऐसी महिलाओं को संवेदनहीन बने रहना जरूरी है वह अपने निर्णय पर जीने कि बात , नियम कानून संविधान का उपयोग या सहारा लेकर अपने स्वं का भविष्य एवम् सपने साकार करने कि जरूरत है ,,
— इंजि. सोनू सीताराम धानुक “सोम”