हम किसान के वंशज हैं…
हम किसान के वंशज हैं, देखो कितने दर्द सहे हैं।।
पेट मैं भरता सभी का,
छोड़ अपनी ख्वाहिशों को।
रात-दिन कर एक सारा
करता नमन मैं भूमि को।।
न जाने कितनी पीड़ाएं झेली
न जाने कितने वज्र सहे हैं
अन्न उगाने की खातिर मैने
न जाने कितने द्वंद सहे हैं।।
हम किसान के वंशज हैं, देखो कितने दर्द सहे हैं।।
खून पसीना सब बह जाता
पैरों में छाले बन जाते हैं
लेकिन जगती की पीड़ा को
हम देख नही सकते हैं।।
सब हमको अपमानित करते
अनपढ़ , गंवार सब सहते हैं
सम्मान कभी न पाता हूँ
मौसम की ढेरों मार सहे हैं।।
हम किसान के वंशज हैं, देखो कितने दर्द सहे हैं।।
बच्चों की इच्छा न पूरी करता
न पत्नी का कर पाता मान कभी
कठिन परिश्रम करने पर भी
न होता मुझको लाभ कभी।
पीड़ा हमको तब होती है
जब राजनीति में पिसते हैं
फिर भी हम चुप हो रहते हैं
सब विधिका विधान सहे हैं
हम किसान के वंशज हैं, देखो कितने दर्द सहे हैं।।