गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

मिलती है शबनम उतनी ही
जिसकी जितनी प्यास है
और उड़ानें तय करतीं
कितना किसका आकाश है

ऊँचाई पर जाने की तो
जंग छिड़ी है आपस में
जीत वही पाता जो रखता
अपने पर विश्वास है

कितने लोग कलम से लिखते
गीत गजल कवितायें पर
जो दिल से लिखता है वो ही
रच पाता इतिहास है

बन मंदिर-मस्जिद जाये भी
उसकी इबादत हो जाती
हर कोशिश को हिम्मत देकर
जो कहता ‘शाबाश’ है

उसको पाने की खातिर जो
खुद को भुला देता है वो
मीरा बनता सूरा बनता
कोई तुलसीदास है

— अर्चना पांडा

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका