कविता

चार दिन की जिन्दगी

चार दिन की जिन्दगी है कौन यहाँ रह पायेगा
एक दिन इस दुनियाँ से हर कोई जाएगा

तीन कड़ियाँ जीवन की  उलझा इसी में मन
बचपन , जवानी और बुढापा  है जीवन

ढल जाएगी ये जवानी और ये रूप तेरा
रह जायेगा जग में बस कर्मो का  बसेरा

धन ,दौलत रुपया ,पैसा यही रह जायेगा
खाली हाथ आये हो सत्कर्म साथ जाएगा

जो दिल दुखाते उन पर ऐतबार करते हो
ऐसी फरेबी दुनियाँ से क्यों प्यार करते  हो

मत इतरा  जवानी पर   कल ढल जायेगी
दो गज में ही तेरी कहानी सिमट जायेगी

मत खोना  इस कदर दुनियाँ के मेले में
अपनों को ही भूल बैठो पड़ के इस झमेले में

जितने तेरे अपने है सब वक्त का चलन देंगे
लूट लेंगे धन दौलत दो गज बस कफन देंगे

जब तक है रुतबा तेरा सबका स्वभाव पानी है
दो पल की मेहमा बस  ये जिन्दगानी है

जिनके लिए है परेशा वो तुझे भूला देंगे
प्राण तन से निकलेगा झट से जला देंगे

रह जायेगी जग में जो  तेरी अच्छाई है
साथ  जायेगी  तेरे जो कर्मो की कमाई है

संघर्ष है ये जीवन ,मन उसमे उलझा है
भावुक और सरल है ऋतु  कौन तुझे समझा है

कर कुछ ऐसा जिससे सबके दिल बदल जाये
दुनियाँ भर की नफरत बस प्यार में ढल जाये

निकलते ही साँस ये सब छूट जाते है
भाई , बहन , बेटा , बेटी हर रिश्ते टूट जाते है

राम नाम भजले मन ये  जिंदगी बदल जाये
क्या पता ये मिट्टी का तन कब , कहाँ फिसल जाये

— ऋतु ऊषा राय

ऋतु उषा राय

जन्म 1983 ग्राम -भदाँव ,पोस्ट -मलतारी जिला-आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा- एम ए , बीएड शौक- जीवन से जुड़ी कविताएं लिखना प्रकाशित कविताएं बेटियाँ , किनारा, प्यासी वसुंधरा अमीरी -गरीबी व अन्य कई कविताएं जन्म 1983 मो- 8429551052