यशोदा
डोरबैल बजते ही मैने दरवाजा खोला सामने मुश्किल से दो महीने के बच्चे को गोद में लिए मेरे घर में काम की सहायिका यशोदा खड़ी थी। मैं हतप्रभ सी देखती रही और उसे अन्दर आने को कहा। मैने एकदम पूछा , अरे यह किसके बच्चे को लेकर आई हो। इतना छोटा और मुझे तो यह कुछ बीमार भी लग रहा है।
यशोदा हंस कर बोली मैडम यह मेरी बेटी है। अभी दो महीने की नहीं हुई, यह जन्म से ही इतनी कमजोर है।
तेरी बच्ची ! क्या आसमान से भगवान जी ने भेज दी?
यशोदा की खुशी का कोई पार नहीं था। उसने कहा मैडम जब मेरा छोटा बेटा हुआ तब मैं बेटी चाह रही थी। अब तो वह भी दस साल का हो गया हे। भगवान ने सच में मेरी इच्छा पूरी कर दी। ऐसा हुआ कि मेरी पड़ोसन मीना की दो बेटियाँ हैं इस बार उसकी यह जुड़वां बेटियाँ हुईं। इसकी दूसरी बहिन तो काफी तंदुरुस्त है, यह कमजोर और बीमार सी है। मीना इसकी देखभाल नहीं करती थी। इसे रोते देख कर और भूख से बेहाल देख कर मैं इसके लिए दूध पिलाने वाली बोतल ले आई और दूध पिलाया।बच्ची जब बहुत बीमार हो गई तो मीना ने सोचा शायद यह बेचेगी नहीं। चार बेटियों को पालना उसके लिए कठिन हो रहा था। तब मैने मीना से कहा यह बच्ची मुझे दे दे। मै इसे पालूंगी। मै उसी समय इसे अस्पताल ले गई।इसे एडमिट कर लिया।मीना तो इसे देखने भी नहीं आई। चार दिन बाद इसे अस्पताल से छुट्टी मिली। मैने मीना से कहा यह बच्ची मुझ से हिलमिल गाई है और मुझे ही अपनी माँ समझती है।यदि तुम मान जाओ तो मैं इसे गोद ले लूँ? मेरी बहुत इच्छा है कि मेरी बेटी हो।मेरे पास यह ठीक से पल जाएगी। पहले तो मीना मानी नहीं कहने लगी जैसे तीन पल रही हैं यह भी पल जाएगी। एक महीना मैं रोज उसे इस कमजोर सी बच्ची का वास्ता देकर समझाती रही।पर बाद में इसकी हालत देख कर मान गई। मैने इसकी खूब देखभाल की और अब यह ठीक हो गई है।
मैं धैर्यपूर्वक उसकी बातें सुन रही थी। यशोदा ने बड़े उत्साह से बताया — मैडम आज से मेरी यह आस्था गुड़िया कानूनन मेरी हो गई है। मैने कोर्ट के सारे कागज भर दिए। अपने और मीना तथा उसके पति की रजामन्दी से आस्था अब मेरी बच्ची है। उसकी आँखों में स्नेह झलक रहा था। मैने भी प्रसन्नता से बिटिया को शगुन देते हुए कहा — तुमने तो अपने नाम को सार्थक कर दिया। तुम सही अर्थों में “यशोदा” हो।