राजनीतिलेख

आदरणीय प्रधानमंत्री जी से भारतीय नारी का कृतज्ञता भरा अभिवादन

सेवा में,

आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी,
प्रधानमंत्री कार्यालय,
भारत सरकार, भारत।

विषय- एक भारतीय नारी का कृतज्ञता भरा अभिवादन पत्र।

महोदय,
सादर चरण वंदन।
आज जिस परिस्थिति से हमारा देश या यूँ कहूँ कि पूरा विश्व कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से गुजर रहा है। वह कोई साधारण परिस्थिति नहीं है। हमारे देश भारत ने इस वैश्विक महामारी से आपके कुशल नेतृत्व और दूरदर्शिता से इसको जिस प्रकार अभी तक सँभाला है, वह एक अपनेआप में भारत की ओर से पूरे विश्व के लिए उदाहरण प्रस्तुत हुआ है। जिसमें कि आप वैज्ञानिक तथा भारतीय सभ्यता के अनोखे संयोजन करके देश के अंदर इसको काफ़ी हद तक कम से कम संसाधनों का उपयोग करते हुए नियंत्रण में लाएँ हैं। यह तो सर्वविदित है कि हमारा भारतवर्ष एक बहुत बड़ी जनसंख्या को अपने में समाहित किये हुए है, जो कि विभिन्न विचारधाराओं का मिश्रण है। आपने इन सबको अपने चमत्कृत व्यक्तित्व से सँभाला है। चाहे वह आपका थाली पीटना तथा दीपक प्रज्वलित करने का आव्हान ही क्यों न हो। जिस प्रकार से समस्त भारतवासियों ने न केवल अपने एकता का परिचय दिया बल्कि समस्त विश्व को एक नई राह भी दिखाई और हमारे सौभाग्य से आपको अन्य राष्ट्रीय अध्यक्षों को इस महामारी में अगुवाई करने का अवसर प्रदान किया।
चूँकि यह महामारी लंबे समय तक चलनेवाली है यह सर्वविदित है और इसका प्रतिष्ठित इलाज़ भी अभी तक संभव नहीं हो पाया है। इसलिए आपको इस मुहीम को आगे बढ़ाने के लिए फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने होंगे ताकि हम कोरोना जैसी महामारी पर विजय प्राप्त कर सकें।
मैं भारत की राजधानी दिल्ली में निवास करती हूँ, जहां समस्त व्यापारों की मण्डी है जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। आपने जो साहसिक कदम लॉकडाउन का लिया है वह इस महामारी को रोकने के लिए। उससे हमारी अर्थव्यवस्था किंचित् समय के लिए पटरी से उतर गई है। मुझे विश्वास है कि आपके कुशल प्रबंधन और मार्गदर्शन से यह किंचित् समय में ठीक भी हो जाएगी।
अतः मैं आपसे अनुरोध करना चाहूँगी कि आप योजनाबद्ध तरीक़े से दिल्ली में संचालित असंघटित क्षेत्र के व्यवसायों को संघटित क्षेत्र में लाने की योजना बनाएं। जिससे कि अर्थव्यवस्था व रोज़गार के नए अवसर प्रदान हो सकें और कोई भी भूखा न रह सके।
एक अनुरोध और आपसे करना चाहूँगी कि जैसे आपने इस भयानक कोरोना की परिस्थिति से भारत को बाहर निकालने में अपना योगदान दिया है उसी प्रकार हिंदी को भी वही अपनी पुरानी पहचान मिल जाय तो मैं आपकी ह्रदय से आभारी रहूँगी।
इसी आशा के साथ अपनी भाषा को विराम देतीं हूँ। अगर कुछ अज्ञानतावश ज़्यादा लिख दिया हो तो उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

सादर धन्यवाद

नूतन गर्ग
दिल्ली

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक