कविता

औपचारिकता – नया साल

आजकल हम हर त्योहार
औपचारिकता के लिए
मनाते हैं
हो दीपावली या नया वर्ष
यूं ही मनाते हैं
सबको शुभकामनाएं
भेजकर अपना कर्तव्य
निभाते हैं
पहिले मिलकर शुभकामनाएं
देते थे
फिर फोन से
देने लगे
आज सोशल मीडिया के
इस युग में वाटसआप फेसबुक
से भेजते हैं शुभकामनाएं
न किसी की खैर खबर
लेते हैं न देखते हैं
किसी की भावनाँए
आधुनिकता के इस दौर
में शून्य हो गई हैं संवेदनाएं
हर दिन को
नये साल की तरह मनाएं
हो सकता है कि अगला दिन
हमारी जिंदगी में
आये या न आये

— डॉ प्रताप मोहन “भारतीय

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय"

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