गूँजे सिंहों की हुँकार
फिर शौर्ययुग से युद्धक्षेत्र की,
हल्दीघाटी में मचे हाहाकार।
पुनः कान्तार में अस्तित्व की,,
गूँजे सिंहों की हुँकार।।
पवित्र मन्दाकिनी के उद्गम हेतु,कब भगीरथ तप करेगा?
भारतराष्ट्र के प्राण राम से,कब लंकेश का दर्प मरेगा?
तीर चढ़ा गांडीव से कौरव का,
फिर धूमिल करे अंहकार।1।
पुनः कान्तार में अस्तित्व की,,
गूँजे सिंहों की हुँकार।1।
जैता-कूंपा के रौद्र रूप से,कब टूटेगा सूरी का दम्भ?
वीर विजयी कुम्भा के स्वप्नों से,कब बनेगा विजय स्तम्भ?
खानवा में संगठित साँगा,
फिर शत्रु को दे ललकार।
पुनः कान्तार में अस्तित्व की,,
गूँजे सिंहों की हुँकार।2।
रूपादे-बाला की धर्म साधना से,कब होगा पूर्ण हवन?
कब प्रतीक्षारत चित्तौड़ करेगा,जौहर ज्वाला का प्रज्ज्वलन?
फ़िर रमती मीरा से बजे,
पदावली भक्ति की झनकार।
पुनः कान्तार में अस्तित्व की,,
गूँजे सिंहों की हुँकार।3।
— कुँवर मनु प्रताप सिंह