हमारे गुरुकुल सुरक्षित रहेंगे तभी हमारा धर्म भी सुरक्षित रहेगाः वेदवसु शास्त्री
ओ३म्
आर्यसमाज राजपुर-देहरादून का वार्षिकोत्सव
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आर्यसमाज, राजपुर-देहरादून दिनांक 1-1-2016 को स्थापित उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून का सबसे नया आर्यसमाज है। श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी इसके यशस्वी प्रधान हैं। मंत्री श्री ओम्प्रकाश महेन्द्रू जी हैं। प्रत्येक वर्ष इस समाज के वार्षिकोत्सव होते हैं। वर्ष 2019 में भी समाज का वार्षिकोत्सव धूमधाम से सम्पन्न किया गया था। इस वर्ष भी समाज के अधिकारियों ने अपनी पूरी शक्ति से भव्यता के साथ आर्यसमाज का वार्षिक उत्सव सम्पन्न किया। आयोजन में अनेक विद्वान एवं भजनोपदेशकों सहित आर्यसमाज से जुड़े महत्वपूर्ण व्यक्तियों एवं स्थानीय लोगों में उत्सव में भाग लिया। इस आयोजन की एक रिर्पोट हम कल दिनांक 27-12-2020 को प्रस्तुत कर चुके हैं। इस आलेख में हम उत्सव में सम्पन्न अन्य व्याख्यानों एवं भजनों आदि की जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं। हम समाज के उत्सव में प्रातः 9.00 बजे पहुंचे थे। वहां दो कुण्डों में यज्ञ चल रहा था। यज्ञ की ब्रह्मा द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी थी तथा मन्त्रपाठ उनकी ब्रह्मचारिणियों द्वारा किया जा रहा था। आचार्या जी का गुरुकुल आर्यसमाज के निकट ही होने के कारण गुरुकुल की प्रायः सभी कन्यायें उत्सव में पधारी हुईं थीं जिससे उत्सव की शोभा में वृद्धि हुई। यज्ञ विधिवत् पूर्ण श्रद्धा के साथ सम्पन्न हुआ। यज्ञ की सामप्ति के बाद आयोजन में उपस्थित आर्य भजनोपदेशक श्री धर्मसिंह, सहारनपुर तथा ढोलक पर उनको संगति देने वाले आर्यबन्धु श्री नाथीराम जी ने यज्ञ प्रार्थना को बहुत ही भावविभोर होकर प्रस्तुत किया। यजमानों को आशीर्वाद की कार्यवाही भी परम्परागत विधि से सम्पन्न की गई। यज्ञ की समाप्ति पर समाज के प्रधान श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने आयोजन विषयक अनेक सूचनायें श्रोताओं को दीं। यज्ञ के बाद ओ३म् ध्वज फहराया गया। इस अवसर पर ध्वज गीत ‘जयति ओ३म् ध्वज व्येाम विहारी’ भी हुआ जिसे कन्या गुरुकुल की छात्राओं के साथ मिलकर सभी आगन्तुकों व धर्मप्रेमियों ने श्रद्धापूर्वक गाया। ध्वजारोहण वयोवृद्ध ऋषिभक्त श्री सुखबीरसिंह वर्मा जी के करकमलों से सम्पन्न हुआ जिसमें आर्यसमाज के प्रधान एवं मंत्री जी आदि ने भी सहयोग किया। उत्सव में स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस भी मनाया गया। इस अवसर पर पहले ऋषि भक्त प्रेम प्रकाश वर्मा ने ओ३म् ध्वज पर अपने विचार प्रस्तुत किये। उनके बाद द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी ने श्रद्धालुओं को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि परम पिता परमात्मा का स्थान सर्वोपरि है, उनकी कोई उपमा नहीं है। परमात्मा का मुख्य नाम ओ३म् है। परमात्मा का वाचक नाम प्रणव भी है। हमें ओ३म् में स्थित होना चाहिये। परमात्मा को आचार्या जी ने नमन किया। उन्होंने कहा कि परमात्मा किसी से भेदभाव नहीं करते। हमें भी किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिये। आचार्या जी ने कहा कि परमात्मा के पास सब जीवों वा मनुष्यों के कर्मों का हिसाब है। हमने अपनी इन भावनाओं के साथ ओ३म् का ध्वज फहराया है। हम सबको मिलकर संसार का कल्याण करना है। इस सम्बोधन के बाद उत्सव में पधारे सभी लोगों ने मिलकर प्रातःराश लिया।
उत्सव के शेष कार्यक्रमों का आयोजन समाज मन्दिर के बाहर लगाये गये भव्य पण्डाल में हुआ। प्रथम द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की कन्याओं ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। मंगलाचरण के बाद गुरुकुल की सात कन्याओं ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘तेरी दया की चाह की, चाहना हम करें। मेरी कृपा की चाह में प्रार्थना हम करें।।’ कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए 97 वर्षीय ऋषिभक्त श्री सुखबीरसिंह वर्मा जी को चुना गया। इसी के साथ आयोजन में पधारे प्रमुख लोगों का परिचय भी कराया गया और शाल एवं ओ३म् पटके आदि से उनका सम्मान किया गया। आर्य भजनोपदेशक श्री धर्मसिंह जी ने भाव विभोर होकर और श्रद्धा में भरकर अनेक ऋषिभक्ति एवं देशभक्ति के गीत सुनायें जिससे लोग गीतों के भावों में बहते गये। सभी को गीत सुनकर आनन्द का लाभ हुआ। अनेक मित्रों ने उनको धनराशियां भेंट कर अपनी अपनी प्रसन्नता का प्रदर्शन किया। श्री धर्मसिंह जी ने जो पहला भजन प्रस्तुत किया उसके बोल थे ‘थोड़ा सा वह भाग्यहीन है जिसके घर सन्तान नहीं, मगर वह पूरा बदकिस्मत है याद जिसे भगवान नहीं।’ श्री धर्मसिंह जी ने स्वामी श्रद्धानन्द जी पर भी एक भावपूर्ण भजन की प्रस्तुति की। उनके गाये एक भजन के बोल थे ‘एक जंगल में नई बस्ती बसा दी तुन्हे, आग पत्थर में नहीं लगती लगा दी तुन्हें।’ इसके बाद आपने देशभक्ति का एक बहुत ही प्रभावशाली गीत सुनाया जिसे सुनकर श्रोता भावविभोर हो गये और अनेक लोगों ने आपको धनराशियां देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने श्री धर्मसिंह जी का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने डाकपत्थर के पास के गांवों में धर्मसिंह जी द्वारा प्रचार कर वर्षों पूर्व 6 नये आर्यसमाज स्थापित किये थे। शर्मा जी ने इस अवसर अनेक प्रभावपूर्ण संस्मरण भी सुनाये। उन्होंने कहा कि वह रात्रि 10-11 बजे तक गांवों में प्रचार किया करते थे। उन्होंने भजनोपदेशकों की सहायता से मन्दिरों, स्कूलों तथा ग्राम पंचायत के भवनों आदि में सभायें व सत्संग आयोजित कर प्रचार किया। आज भी वह सभी आर्यसमाज संचालित हो रही हैं।
श्री धर्मसिंह जी के बाद स्थानीय ऋषिभक्त श्री उम्मेद सिंह विशारद जी के भजन हुए। श्री विशारद ने कहा कि उन्होंने सन् 1982 में उत्तराखण्ड के पर्वतीय नगर पौड़ी में आर्य महासम्मेलन का आयोजन किया था जो अत्यन्त सफल रहा था। उन्होंने अपनी एक स्वरचित कविता की चर्चा की और उसे भजन के रूप में गाकर प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि वेद प्रचार से महत्वपूर्ण कोई कार्य नहीं हो सकता। इस वेदप्रचार के काम को ऋषि दयानन्द ने अपने समय में किया तथा आगे हमें करने का काम सौंपा था। उन्होंने चिन्ता के शब्दों में कहा कि आर्यसमाज का काम आगे नहीं बढ़ रहा है। उनके गाये हुए गीत की प्रथम पंक्ति थी ‘ये वक्त है आखिरी मेरा अब मैं यहां से जाता हूं। वेदों की शमा जलती रहे आर्यों मैं तुमसे यह चाहता हूं।’ इसके बाद स्थानीय आर्य विद्वान पुरोहित पं. वेदवसु शास्त्री का सम्बोधन हुआ।
अपने सम्बोधन के आरम्भ में आचार्य वेदवसु शास्त्री जी ने कहा कि देश संकट की घड़ी में है। देश का उद्धार आर्यसमाज ही कर सकता है। उन्होंने कहा कि यदि आर्यसमाज जाग्रत नहीं होगा तो देश की रक्षा करना कठिन हो जायेगा। पं. वेदवसु जी बंगाल की 17 दिन की यात्रा करके लौटे हैं। वहां वह अनेक स्थानों पर गये और वहां की सामाजिक स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने वहां एक आर्यसमाज भी स्थापित किया है। पंडित वेदवसु जी ने देश में उठ रही अराष्ट्रीय शक्तियों की ओर इशारा भी किया। पंडित वेदवसु जी ने कहा कि जिन लोगों ने त्याग व बलिदान देकर देश को आजाद कराया, यदि वह लोग देश की बागडोर संभाल लेते तो आज जैसे स्थिति न होती। पंडित जी ने श्री रवीन्द्र नाथ टैगोर की एक कविता भी सुनाई जो की सूर्य पर थी। इस कविता में महर्षि दयानन्द को सूर्य बताया गया था। पंडित जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द वेदों के सूर्य के समान थे। उन्होंने संसार में वेदों का प्रकाश फैलाया है। ऋषि दयानन्द ने देश व समाज से अज्ञान व अन्धकार मिटा कर वैदिक धर्म की स्थापना की। ऋषि दयानन्द ने भारत को गौरवशाली बनाने का अनन्य प्रयास किया। पंडित वेदवसु जी ने ऋषि दयानन्द के शिष्य स्वामी श्रद्धानन्द को अमर हुतात्मा बताया। उन्होंने अन्य आर्य हुतात्माओं पं. लेखराम, महाशय राजपाल आदि के नाम भी लिये। पंडित जी ने कहा कि आर्यसमाज के त्यागी व बलिदानी महापुरुषों के पुरुषार्थ के कारण ही संसार में ओ३म् की पताका फहरा रही है। वेदवसु जी ने श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी के आर्यसमाज के प्रचार कार्यों का उल्लेख किया और उन्हें वेद प्रचार करने व प्रकाश उत्पन्न करने वाला एक दीपक कहा।
पंडित वेदवसु जी ने दुःख भरे शब्दों में कहा कि आज की आर्यसमाजियों की युवा पीढ़ी आर्यसमाज की परम्पराओं से दूर होती जा रही है। उन्होंने कहा कि आज हम सबको स्वामी श्रद्धानन्द जी के जीवन से प्रेरणा लेकर काम करने की आवश्यकता है। हमें आर्यसमाज के गुरुकुलों को महत्व देने के साथ उनसे सभी प्रकार से सहयोग करना चाहिये। पंडित जी ने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने वैदिक धर्म की रक्षा पर अपनी दृष्टि केन्द्रित कर कार्य किया था। उन्होंने कहा कि यदि हमारे गुरुकुल सुरक्षित एवं क्रियाशील रहेंगे तभी हमारा समाज व देश सहित हमारी धर्म व संस्कृति भी सुरक्षित रहेगी। पंडित जी ने आर्यों को प्रतिज्ञा करने को कहा कि वह स्वामी श्रद्धानन्द जी के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। स्वामी श्रद्धानन्द जी के जीवन से प्रेरणा लेकर और अपने स्वार्थों का त्याग कर वैदिक धर्म का प्रचार करने की उन्होंने प्रेरणा की। पं. वेदवसु जी ने आर्यसमाज मन्दिर राजपुर के दाता डा. वेदप्रकाश गुप्ता जी को स्मरण किया और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि उन्होंने बंगाल में अपने घर पर आर्यसमाज की स्थापना की है। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज को स्वामी श्रद्धानन्द की स्मृति में देश व धर्म की रक्षा के लिए शुद्धि का चक्र चलाना पड़ेगा। उन्होंने बंगाल में वैदिकधर्म की स्थिति को चिन्ताजनक बताया। उन्होने देश देशान्तर में प्रभावशाली रूप से धर्म प्रचार की प्रेरणा करते हुए अपने सम्बोधन को विराम दिया।
प्राकृतिक रोग चिकित्सक तथा ऋषि भक्त डा. विनोद कुमार शर्मा जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि आज सम्पूर्ण मानव जाति अनेकानेक समस्याओं में घिर चुकी है। अन्धविश्वासों में हमें फंसाया जा रहा है। हमारा स्वास्थ्य निराशाजनक स्थिति में पहुंच रहा है। देश व समाज में अधिकांश लोग अस्वस्थ हैं। पूरी मानवजाति संकट में आ चुकी है। प्रश्न है कि बीमारियां समाप्त कैसे हों? हमारी नस्लें बीमारियों से भरी पड़ी हैं। सभी खाद्य पदार्थों में मिलावट की जाती है। डर दिखा कर दवाईयां बेची जा रही हैं। अधिकांश लोग रक्तचाप, मधुमेह, घुटने में दर्द आदि अनेकानेक रोगों की दवायें ले रहे हैं। उन्होंने श्रोताओं से पूछा कि यदि हम आर्यों को दवा खानी पड़ती है तो हमारे जीवन में सन्ध्या व अग्निहोत्र करने का क्या लाभ हुआ? उन्होंने कहा कि इसका अर्थ है कि हम सही प्रकार से सन्ध्या व यज्ञ नहीं करते हैं। हमें अपने आहार पर भी ध्यान देना चाहिये। डा. विनोद कुमार शर्मा जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने आर्यसमाज के नियम 6 में शरीर रक्षा की प्रेरणा की है। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज तथा वैदिक सिद्धान्त पिछड़ते जा रहे हैं। हम लोग वैदिक धर्म का प्रचार बाहर के लोगों में न करके अपने वैदिक धर्मियों में ही करते हैं। ऐसा करना व्यर्थ प्रतीत होता है। प्राकृतिक रोग चिकित्सक शर्मा जी ने अनेक रोगों का उल्लेख किया और कहा कि उनके पास आने वाले गम्भीर रोगों से ग्रस्त रोगी ठीक हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने निरोग भारत यूट्यूब चैनल से अरब देश के कुछ स्त्री व पुरुषों का मांस का सेवन छुडव़ाया है। शर्मा जी ने कहा कि हमें भिन्न प्रकार के टीकों व दवाईयों के द्वारा नपुसंक बनाने की साजिशें भी हो रही हैं। इनसे हमें सावधान रहना होगा। इसके लिये उन्होंने बाजारी भोजन करने में सावधानी रखने को कहा।
प्राकृतिक चिकित्सक डा. विनोदकुमार शर्मा ने कहा कि प्राचीन काल में हमारे पूर्वज प्राकृतिक जीवन व्यतीत करते थे। उनका आहार दुग्ध, फल, अन्न एवं वनस्पतियां होती थीं। वह सब आज से अधिक आयु को प्राप्त करते थे। वनस्पतियों से ही ओषधियां बनाई जाती थी। उसी को आयुर्वेद के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजों के भारत आने के बाद हमारी जीवन शैली में परिवर्तन आया है। उन्होंने हमें साधारण रोगों में अंग्रेजी दवाईयां व गोलियां खिलानी आरम्भ की। उन्होंने कहा कि आज चाइनीज वा विदेशी भोजन अधिक खाये जाते हैं जिससे हमें अनेकानेक रोग उत्पन्न हो रहे हैं। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि यदि आप स्वयं को व अपने बच्चों को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो प्राकृतिक जीवन शैली से युक्त जीवन व्यतीत कीजिए।
कार्यक्रम में शास्त्रीय गायन प्रस्तुत करने वाली गायिका श्रीमती मीनाक्षी पंवार जी के दो भजन हुए। दोनों ही गीत पं. सत्यपाल पथिक जी की रचनायें थी। पहला भजन था ‘हे ज्ञानवान भगवन हमको भी ज्ञान दे दो, करुणा के चार छींटे करुणानिधान दे दो।।’ उनका गाया गया दूसरा भजन था ‘प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो, प्रभु तुम गगन से विशाल हो। मैं मिसाल दूं तुम्हें कौन सी, दुनियां में तुम बेमिसाल हो।।’ इसके बाद आर्यसमाज, राजपुर-देहरादून के मंत्री श्री ओम्प्रकाश महेन्द्रू जी ने अपने समाज की वार्षिक रिर्पोट प्रस्तुत की। आर्यसमाज राजपुर के ही सक्रिय सदस्य श्री यशवीर आर्य ने इस अवसर पर बचपन में सुना व उनका प्रिय गीत ‘धन्य है तुमको ऐ ऋषि तुम्हें हमें जगा दिया। सो सो के लुट रहे थे हम आकर हमें बचा लिया।।’ को अपने पूरे जोश एवं भावनाओं में भर कर सुनाया। सभी ने उनके व उनसे पूर्व श्रीमती मीनाक्षी पंवार जी के भजनों की सराहना की। कार्यक्रम के अन्त में कन्या गुरुकुल की छात्राओं ने शान्तिपाठ करने के बाद वैदिक धर्म की जय आदि के जयकारे लगाये। कार्यक्रम की समाप्ति के बाद सबमें मिलकर भोजन किया। कार्यक्रम सफल रहा। देहरादून नगर की आर्यसमाजों के अनेक पदाधिकारियों व सदस्यों सहित बड़ी संख्या में विद्वान व वैदिक धर्म प्रेमी समाज के उत्सव में सम्मिलित थे। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य