कविता

मेरा गाँव

मेरा गाँव अब वो गाँव नहीं रहा है
जहाँ पर मिट्टी की सुगंध आती
कहाँ अब वो घास-फुस के घर
अब हमारा गाँव बदल रहा है!!
कहाँ अब विद्यालय मे बच्चों की जमघट
सब के सब मॉर्डन की चाहत मे,
जाने कहाँ खो गई वो भूमि की खुश्बू
सीमेंट की कही दूर महक मे!!
बच्चों की वो गुल्ली डंडा, लुकाछिपी
यूँ तो सब मोबाइल मे व्यस्त नजर आते है
गाँव मे वो युवाओ की चहचाहट
सब मतलबी, दूसरों की खुशियों मे कहाँ शामिल होते है!!
यह सोच हम भी इसमें ही मिल गए
गाँव की हरियाली छोड़ उसे मॉर्डन बनाने लगे
गाँव की उसकी ही आत्मा छीन
उसे बनावट की चीजों से सजाने लगे!!
मेरा गाँव मे, वो गाँव कहाँ नजर आता है
जो कभी भरा पड़ा बगीचा हमारा
आज सब कुछ उजड़ा-सा नजर आता है
सचमुच बदल गया ये गाँव हमारा!!
जो कभी दिखती तालाबों मे मछली
अब वो खंडहर -सा नजर आता है
गाँव मे भय सा लगने लगा है
वाकई हमारा गाँव अब बदल रहा है!!
✍️राज कुमारी
गोड्डा, झारखण्ड

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड