ढाई अक्षर
ढाई अक्षर प्रेम का, जो बांधे संसार।
ढाई अक्षर की घृणा, जिसमें दुख अपार।
ढाई अक्षर जन्म का, जो जीवन का सार।
ढाई अक्षर मृत्यु है, स्वांसों का उद्धार।
ढाई अक्षर अस्थि का, ढाई अक्षर मज्जा।
जिसमें रूप रंग है, देह की साज-सज्जा।
ढाई अक्षर मित्र का, हृदय की जो आस।
ढाई अक्षर शत्रु का, संबंधों का नाश।
ढाई अक्षर मिट्टी का, जो करती निर्माण।
ढाई अक्षर अर्थी का, जिसमें है अवसान।
ढाई अक्षर विश्व है, अभिनय करते सब।
रंगभूमि विधाता की, जीते मरते सब।
ढाई अक्षर है प्रभु का, जिसमें है संसार।
और ढाई अक्षर प्रेमसे, मिलते पालन हार।
ढाई अक्षर स्वार्थ का, करता सब विनाश।
ढाई अक्षर स्नेहा का, जीवन की आस।
— कामिनी मिश्रा