नव वर्ष की प्रतीक्षा
कितने जीवन चले गए, कितने पथिक भटक गए!
पछतावा होता त्रुटियों पर, हम इतने लोभी कैसे हो गए
साधारण जीवन जीने की, कला हम सीख न सके!
आगे बढ़ने की होड़ में, कोई भी लड़ाई जीत न सके!
ये अंधकार दीर्घकाल तक चलता जा रहा!
दिवस का रास्ता देख देख, समय बीतता जा रहा!
आशापूर्ण दृष्टि से, अब नव वर्ष की प्रतीक्षा है!
विस्मित हूँ देखकर, ये कैसी विषम परीक्षा है!
~ रूना लखनवी