नसीब का लिखा
इस दुनिया में
जन्म लेकर
आंखें जो खोली पहली बार
तो देखा उसने
मां को ही
चूल्हे-चौके का सारा काम
करते हुए हमेशा,
वो ‘ मासूम ‘ अब
खिलौनों में ‘ किचन सेट ‘ से
ज्यादातर खेलना पसंद करती है।
इस दुनिया में
जन्म लेकर
आंखें जो खोली पहली बार
तो देखा उसने
मां को ही
घूंघट बड़ों और परायों से
करते हुए हमेशा,
वो ‘ मासूम ‘ अब
‘ जींस-टॉप ‘ डालते हुए भी
दुपट्टा लेने की जिद करती है।
इस दुनिया में
जन्म लेकर
आंखें जो खोली पहली बार
तो देखा उसने
मां को ही
उसे संवारने-संभालने में
लगे हुए हमेशा,
वो ‘ मासूम ‘ अब
अपनी गुड़िया को संवारने-संभालने
में ज्यादातर लगी रहती है।
सिर्फ नसीब में ही नहीं,
‘ बेटियों ‘ के अचेतन मन में भी हमनें
घर-गृहस्थी और बच्चों की
देखभाल भर रखी है।
— जितेन्द्र ‘कबीर’