बालकहानी : एहसास
दोपहर का समय था। बच्चे स्कूल के मैदान पर लंच कर रहे थे। बच्चों के ही पास अध्यापक सुभाष यदु जी खड़े थे। बच्चों पर उनकी नजर थी। एक छोटी सी बच्ची को रोटी न खाते देख यदु जी बोले – ” क्यों जी , रोटी को क्यों नहीं खा रही हो ? ” लड़की मुस्कुरा दी। बोली – ” सर जी , पेट भर गया। खाने का मन नहीं कर रहा है। ”
” ठीक है, मत खाओ। उस पत्थर पर रख दो। वह आ रहा है। खा लेगा। ” यदु जी ने कुत्ते की ओर इशारा किया। तभी लंच कर रहे कक्षा चौथी के छात्र अंकित ने शरारती अंदाज में कहा – ” सर जी , कुत्ता क्यों खाएगा ; आप खा लीजिए ना। ” अंकित की बात सुन यदु जी हतप्रभ रह गया। काठ सा हो गया। गुस्सा भी आया। स्वयं को सम्भाला। इस समय लंच करते अंकित की बातों को यदु जी ने गम्भीरता से नहीं लिया ; और न ही उसे कुछ बोला।
लंच खत्म होते ही क्लास लगी। लंच के बाद अंकित के ही क्लास में यदु जी का पीरियड था। क्लास में उनके दाखिल होते ही सभी बच्चे खड़े होकर एक ही स्वर में बोले – ” गुड आफ्टर नून सर ! ”
” गुड आफ्टर नून बच्चों ! सीट डाऊन। ” सभी बच्चों पर नजर डालते हुए यदु जी बोले। उनके दिमाग में लंच वाली बात चल रही थी। उसे नजर अंदाज करना भी उचित नहीं समझा। बोले – ” अंकित स्टैंड अप। क्यों जी अंकित , लंच करते समय तुमने मुझे क्या कहा ? ”
” कितने समय सर जी ! मुझे तो कुछ याद नहीं। ” अंकित ने अपनी तर्जनी गाल पर टिकाते हुए कहा।
” वही कुत्ते वाली…मुझे जूठी रोटी खाने के लिए कहने वाली बात…! याद आया कुछ ! ” यदु जी के चेहरे पर अब भी मुस्कान बिखरी हुई थी।
” हाँ…हाँ…ठीक तो कहा था सर जी। जूठी रोटी खाने के लिए। ” यदु जी मुस्कुराहट पर अंकित को हँसी आ रही थी।
” यदु जी अंदर से तमतमा गये। फिर भी शांत रहे। बालक अंकित को भलिभाँति समझ रहे थे वे; आखिर प्रायमरी स्कूल का अध्यापक जो थे। बालवृत्ति उनकी समझ में थी। वे यह भी समझ रहे थे कि अब तो कुछ कहना , या करना भी बहुत जरूरी है। फिर पहले अंकित को बड़े प्यार से बिठाया। कक्षा के सभी बच्चों को उस घटना की पूरी जानकारी हो चुकी थी। बिल्कुल शांत बैठे हुए बच्चों पर नजर डालते हुए यदु जी बोले – ” देखो बच्चों, आज जो हो गया सो हो गया। अब ऐसी बातें नहीं होनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना। ”
” जी सर जी… , ” कक्षा से आवाज आई।
” अब मैं सिर्फ अंकित की ही बात नहीं कर रहा हूँ , बल्कि कोई भी विद्यार्थी किसी अध्यापक से इस तरह की बातें नहीं करेगा ; और न ही दूसरों के साथ। अपने से बड़ों के साथ सम्मान एवं छोटों से प्रेमपूर्वक बात करना हर विद्यार्थी सीखें। आज अंकित से भूल हुई है। पर अंकित अब इस तरह की बात किसी से भी नहीं करेगा ; क्यों जी अंकित…? ”
” जी सर नहीं करेंगे सर…! ” सर झुकाये बैठे अंकित को देखते हुए बच्चे बोले।
अध्यापक की हर बात अंकित बहुत ध्यान से सुन रहा। डर भी रहा था। पर अध्यापक ने न तो उसे डाँटा ; और न ही मारा । इस बात का बड़ा आश्चर्य हो रहा था। उसे अपनी भूल का एहसास हो रहा था। उसकी आँखें डबडबा रही थी। कुछ देर तक कक्षा शांत बनी रही। यदु जी फिर कुछ बोलते , इससे पहले अंकित खड़ा होकर बस इतना ही बोल पाया – ” साॅरी सर जी। अब मुझसे ऐसी गलती कभी नहीं होगी। ” तभी एक अपराधी की तरह खड़े अंकित को अब समझ पाने का एहसास अध्यापक यदु जी भी को हो रहा था।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”
बहुत खूब।सादर