लघुकथा – पाचन शक्ति
तरबूज़ खाते-खाते निहारिका बार-बार दादी से तरबूज़ खाने का इसरार किए जा रही थी और दादी बार-बार खाने से इन्कार कर रही थी। तभी निहारिका की मांँ ने कहा, “रहने दे न बेटा। तुम्हें पता है इस उम्र में पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है।”
“लेकिन मम्मा, तुम्हारी गालियों और तानों को तो दादी आसानी से पचा जाती है।”
दादी के होठों पर एक मुस्कान उभरी जो तुरन्त ख़ौफ़ में बदल गई। मांँ के होठों पर भी मुस्कान उभरी जो गालियों में बदल गई ।
— हरभगवान चावला